मुझे इन्सान बना दो _______________________
मैं हूँ बस आदमी ,मुझे इन्सान बना दो,
भटकता हूँ सब और,कोई मुकाम बता दो,
मिटटी के कण,धूल हूँ,नहीं किसी काम का,
मुझको भी किसी नीव का पाषाण बना दो।
मैं हूँ बस आदमी ,मुझे इन्सान बना दो।
बिखरा हूँ हर तरफ,नहीं कोई पहचान है,
दीप बन जल सकूं,राह में जलना सिखा दो।
बूढा हुआ हूँ उम्र से,समय व्यर्थ गवायाँ,
काम आ सकूं किसी के,कोई राह बता दो।
मैं हूँ बस आदमी ,मुझे इन्सान बना दो।
छल कपट मन में भरा,बस आदमी हूँ मैं,
दूब सा विनम्र और पीपल सा गुणवान बना दो।
आंधियां जो गुजरे,उनके भी तलवे सहला सकूं,
इंसानियत की राह की,पहचान बता दो।
मैं हूँ बस आदमी ,मुझे इन्सान बना दो।
जीवन है व्यर्थ गर आदमी बना रहा,
इंसान बन सकूं में,कोई तदबीर बता दो।
भटका हूँ उम्र भर,मंजिल की तलाश में,
मुझको भी किसी नदी की धार बना दो।
मैं हूँ बस आदमी ,मुझे इन्सान बना दो।
नहीं चाह मेरी,मैं समुंदर बन सकूं,
मीठा रहे पानी,कहीं प्यास बुझा दो.
सूरज की गर्मी से जल ,गर बादल बन गया
जन-जन की प्यास बुझाने ,धरती पर बरसा दो ।
मैं हूँ बस आदमी ,मुझे इन्सान बना दो।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
apki kavita dil ko chooti hai.badhai sweekar karen.
ReplyDeletearvind kumar singh