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Thursday, April 10, 2008

आर्थिक स्वतन्त्रा

आर्थिक स्वतन्त्रा पाने के लिए
महिलाओं ने आज
रिश्तो को बेमानी कर दिया है
पति का घर इस शहर
पत्नी का उस नगर हो गया है
माँ बाप ,भाई बहन सब
पैसे की चमक में
कहीं खो गए है
आर्थिक स्वतंत्रता ने
नारी को
इस कदर उलझा डाला है
हर समस्या का समाधन
बस पैसा बना डाला है
आज
विश्वाश की नीव
इतनी खोखली हो गई है
की
नव योवना अपना
वर्तमान नहीं ,भविष्य खोजती है
अगर
कुछ हो जाए पति को
क्या मेरा होगा
इस विषय पर
शादी से पहले
वह सोचती है।
पति पत्नी
जो कहलाते पूरक
एक दुसरे के
सुख दुःख
होते था साझे
सदा के लिए
आज
अधूरे हो गए हैं
उनके
प्यार भरे अंतरंग क्षण
तनहाइयों में कहीं खो गए हैं.

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