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Sunday, May 11, 2008

महानगर का आदमी

कंक्रीट के जंगलो मे जीता हुआ आदमी
samvedna ke प्रति मृत praayh आदमी
प्यार का भूखा ,अंहकार मे डूबा आदमी
बस दिखावे की जिंदगी, जीता हुआ आदमी
कंक्रीट के जंगलो मे जीता हुआ आदमी।

पैसों की दौड़ मेदौड़ता हुआ आदमी
प्राकृतिक सौन्दर्य को, रौंदता हुआ आदमी
ऊँची अट्टालिकाओं मे रहने वाला आदमी
कीडे ,मकोडे सा ,रेंगने वाला आदमी
कंक्रीट के जंगलों मे ,जीता हुआ आदमी।

सूरज की धुप को ,खोजता हुआ आदमी
चाँद और तारों की ,तलाश मे है आदमी
पानी की चाह मे,भटकता हुआ आदमी
व्यभिचार की जिंदगी मे,डूबा हुआ आदमी
kankrit के जंगलों मे,जीता हुआ आदमी।


मेरी उड़ान पुस्तक से ,कवि अ.किर्तिवर्धन

1 comment:

  1. नमस्कार।
    चाँद और तारों की ,तलाश मे है आदमी
    पानी की चाह मे,भटकता हुआ आदमी
    व्यभिचार की जिंदगी मे,डूबा हुआ आदमी
    kankrit के जंगलों मे,जीता हुआ आदमी।

    कमाल की रचना। यथार्थ और गागर में सागर। समाज का सटीक चित्रण।

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