घर ही नहीं रहे , अब वो मकान बन गए ,
ईंट ,पत्थर ,लोहे का सामान बन गए ।
सिमट गए सब रिश्ते पैसों के दौर में ,
मकान!रात बिताने का स्थान बन गए ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8 2 6 5 8 2 1 8 0 0
ईंट ,पत्थर ,लोहे का सामान बन गए ।
सिमट गए सब रिश्ते पैसों के दौर में ,
मकान!रात बिताने का स्थान बन गए ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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