Pages

Followers

Tuesday, April 23, 2013

makaan aur ghar

घर ही नहीं रहे , अब वो मकान बन गए ,
ईंट ,पत्थर ,लोहे का सामान बन गए ।
सिमट  गए सब  रिश्ते पैसों के दौर में ,
मकान!रात बिताने का स्थान बन गए ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8 2 6 5 8 2 1 8 0 0

No comments:

Post a Comment