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Monday, April 29, 2013

rishton ki choli

होली पर एक रचना

इन्द्र्धनुष के रंगों जैसा, मुझको रंग दो,
होली के रंगों को, सतरंगी कर दो।

राग-द्वेष, बैर-भाव, नफ़रत जड़ से मिटाकर,
बासंती अवसर को, खुशियों से भर दो।

हिन्दू-मुस्लिम की बात नहीं करता यारों,
मानवता जन-जन के जीवन में भर दो।

भूख-गरीबी, आतंकवाद की,आज जलाकर होली,
शिक्षा के रंगों से, जीवन रोशन कर दो।

धर्म-जाति और क्षेत्रवाद की, खेल रहे जो होली,
उन देश के गद्दारों को, होली में स्वाहा कर दो।




डॉ अ कीर्तिवर्धन

विद्या-लक्ष्मी निकेतन
53 महालक्ष्मी एन्क्लेव
मुज़फ्फरनगर-251001 (उत्तर-प्रदेश)

08265821800  

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