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Saturday, May 11, 2013

bachpan ki baat

बचपन की बात

बचपन की बात बस ,  बचपने से सीखिए ,
युवावस्था , आये बुढापा ,बचपन ना जाने दीजिये ।

बचपन की मासूमियत ,मुख पर बरकरार ,हो
कर्मो और विचारों को , कुछ ऐसा भाव दीजिये ।

धीर हों ,गंभीर हों, साहसी व वीर हों ,
सरलता ,सौम्यता का ,आचार विचार कीजिये ।

बचपन है खिलता गुलाब ,चंपा ,चमेली ,जुहू का बाग़ ,
कोमलता जीवन में रहे ,  खुशबू बांटा कीजिये ।

फूलों सा जीवन बनाइये , निर्लिप्त भाव रहे बना ,
शव हो या देव हों , जीवन  समर्पित कीजिये ।

रखें न दिल में हम कभी , किसी बदले की  भावना ,
रूठने और मनाने का खेल , बचपने से सीखिए ।

जाती ,धर्म ,ऊँच  ,नीच ,नहीं यहाँ कोई भेद है ,
बाँट कर पीना व  खाना और जीना सीखिए ।

चोट लगती गर किसी को ,रोने लगता दूसरा ,
दर्द के भी दर्द का अहसास करना सीखिए ।

छल ,कपट ,अहंकार क्या ,जाने नहीं है बचपना ,
प्यार का संसार सारा , बचपने से सीखिए ।

खोये नहीं कहीं बचपना , बचपने का दोस्तों ,
बचपन को बचपन की तरह , विकसित होने दीजिये ।

छीनो न उनसे तुम जमीं ,दे दो उन्हें सारा गगन ,
प्रकृति के साथ मिल ,बचपन को बढ़ने दीजिये ।

आप तो बूढ़े हुए ,  तेरे -मेरे में बँट गए ,
बच्चों के मन पर भेदभाव ,मत थोपा कीजिये ।

सीख लें उनसे सरलता ,नव शिशु की किलकारियाँ ,
तनाव मुक्त जीवन जियें ,बुढापे को बचपन दीजिये ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
८ २ ६ ५ ८ २ १ ८ ० ०

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