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Monday, May 6, 2013

mushkilen kitani bhi aayen

मुश्किलें कितनी भी आयें ,मैं कभी डरता नहीं ,
चल दिया हूँ जब मैं आगे ,फिर कभी रुकता नहीं ।
मैं सरल हूँ जल के जितना ,चाहे जैसा रूप दो,
रुकावटें हो राहों में, लेकिन ठहर सकता नहीं ।
तुम मुझे विभक्त कर दो , जर्रा जर्रा नीर में ,
मैं फिर आगे बढूँगा ,जर्रा बन रुक सकता नहीं ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
८ २ ६ ५ ८ २ १ ८ ० ०

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