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Saturday, October 26, 2013

hindutv aalekh

                            
                                          हिन्दुत्व
हिंदुत्व क्या है ? हिन्दू धर्म की अवधारणा क्या है ? यह प्रशन हमें सदा से ही उद्वेलित करता रहा है। मानवीय दृष्टिकोण रखने वाले , सहिष्णु , राष्ट्र प्रेमी हिन्दुवों को सदैव से ही विश्व के हर जाति एवं धर्म के  द्वारा आदरपूर्वक सम्मान दिया गया है , फिर आज अपने ही देश में हिन्दू व हिन्दू धर्म पर हमला क्यों ?  एक और विश्व को एक मंच पर लाने यानी ग्लोबल विलेज बनाने के प्रयास जारी हैं , जो कि भारतीय संस्कृति व सनातन धर्म में वर्णित विचारधारा “ वसुधैव कुटुम्बकम “ की पुष्टि करते हैं तो दूसरी और कुछ राजनेता एवं विभिन्न धर्मों के धर्म गुरु अथवा धर्म के ठेकेदार हमारी सनातनी विचारधारा को नष्ट करने पर आमादा हैं।

यह निर्विवाद सत्य है कि सृष्टि के प्रारम्भ से जो भी सभ्यता ,संस्कृति , इतिहास विश्व पटल पर उपलब्ध है , वह केवल सनातन धर्म।  जिसे कालान्तर में किन्ही कारणों से हिन्दू धर्म के रूप में उच्चारित किया गया।  एक अवधारणा के अनुसार कालांतर में भारत का नाम हिन्दुस्तान हुआ तब से भारत में रहने वाला प्रत्येक नागरिक हिन्दुस्तानी व हिन्दू कहलाया तथा उसी क्रम में हमारी भाषा भी देवनागरी से हिन्दवी या हिंदी बनी। और इसी क्रम में यहाँ की जीवन पद्धति या जीवन शैली हिन्दू धर्म बनी। मगर एक बात सत्य है कि सनातन धर्म यानी एक ऐसा धर्म जहाँ पर विचार कर पालन करने की छुट है , जहां पर कुछ भी थोपा नहीं गया है तथा जिसमे अन्य सभी धर्मों एवं मतों का सत्कार ,सम्मान करने व उनमे मौजूद अच्छाइयों को आत्मसात करने की शक्ति है।  

हिन्दू शब्द का प्रयोग पहले पहल आठवीं शती के ग्रन्थ “ मेरुतंत्र “ में मिलता है।  इसके तैतीसवें अध्याय में लिखा गया है कि “ शक -हुण आदि का बर्बर आतंक फैलेगा।  जो मनुष्य इसकी बर्बरता से मानवता की रक्षा करेगा , वह हिन्दू है। “ दसवीं सदी के आसपास के ग्रंथों भविष्य पुराण , मेदिनी कोष , हेमंत कोसी कोष ,ब्राहस्पत्य शास्त्र , रामकोष , कालिका पुराण ,शब्द कल्द्रुम , आदि संस्कृत ग्रंथों में हिन्दू शब्द का प्रयोग मिलता है।  फारसी शब्दावली व व्याकरण के अनुसार “ स “ शब्द “ ह “ में परिणित हो जाता है , इसीलिए संभवत: सिन्धु नदी के पार के क्षेत्र भारत को फारसियों द्वारा हिन्दुस्तान तथा यहाँ के निवासियों को हिंदुस्तानी व हिन्दू कहा गया।  कुछ विद्धवानों के अनुसार अरबी भाषा के कवि लबी बिन अखतब बिन तुरफा ने अपने काव्य संग्रह “ सिरतुलकुल “ में हिन्द व वेद शब्द का उल्लेख इस्लाम से 2300 वर्ष पूर्व भी किया था।  

इस्लाम धर्म की स्थापना कुछ सौ वर्षों पहले हुई  जो अन्य मतावलंबियों का विरोध करता है।  ईसाई धर्म का प्रारम्भ काल भी इतिहास के पन्नों में अंकित है और अभी तक उसकी स्याही भी धूमिल नहीं पड़ी है तथा उनकी भी धर्म की अवधारणा का आधार जबरन धर्म मतान्तर ही है।  इन दोनों ही प्रमुख धर्मों के धर्म ग्रंथों में सृष्टि के प्रारम्भ होने के कोई प्रमाण नहीं मिलते हैं।  दोनों धर्मों का विस्तार ,प्रचार, प्रसार किस आधार पर हुआ है अथवा हो रहा है , यह इतिहास में स्वयं दर्ज है और इस चर्चा का यहाँ कोई उद्देश्य भी नहीं है।

धर्म कौन सा श्रेष्ठ है ? हम इस पर भी किसी विवाद में नहीं पड़ना चाहते।  क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति के विचार , परिस्थितियों एवं श्रद्धा का विषय है।  हमारा मानना है धर्म किसी पर थोपा नहीं जाना चाहिए। सत्ता के नशे में जबरन आतंक के द्वारा अथवा किसी लालच के बल पर किसी का धर्मांतरण भी नहीं कराना चाहिए। भगवान बुद्ध ने अपने विचारों तथा कार्यों द्वारा इश्वर प्राप्ति का नया व सुगम मार्ग दुनिया को दिखाया। अपने विचारों को किसी पर थोपा नहीं।  आज सम्पूर्ण विश्व में हर जाती व धर्म के लोग बुद्ध की शिक्षाओं को ग्रहण करते हैं , बोद्ध धर्म की विचारधारा एवं पूजा पद्धति के अनुगामी होकर लाभान्वित हो रहे हैं।  अनेकों लोग बोद्ध धर्म के साथ साथ अपने मूल धर्म का भी पालन व सत्कार करते हैं। बोद्ध धर्म के धार्मिक ग्रंथों एवं पूजा पद्धति में ॐ शब्द का व्यापक प्रयोग किया जाता है।  ॐ स्वयं सनातन धर्म का परिचायक है।  क्या ॐ का उच्चारण करने मात्र से सभी लोग जो भगवान बुद्ध के विचारों में आस्था रखते हों , चाहे वह किसी जाति धर्म के हों , हिन्दू कहलायेंगे ? अथवा बोद्ध धर्म के मतावलम्बी होने के कारण उन्हें अपनी जाति से बाहर कर दिया जाएगा ?

श्री गुरु नानक देव जी ने अध्यात्म की ऊँचाइयों को प्राप्त किया।  उन्होंने  “ एक ओमकार “ द्वारा जन मानस को निर्देश दिया और अपने अनुयाइयों के लिए कुछ नियमों का निर्धारण करते हुए इश्वर प्राप्ति का सर्व सुलभ मार्ग बताया। गुरु वाणी में गुरु नानक देव जी व बाद के गुरुओं के अमृत वचनों का संग्रह है।  जिसमे सभी देवी -देवताओं , संतों , फकीरों , ऋषि -मुनियों , कबीर ,सूर , तुलसी जैसे संतों की वाणी एवं धर्म ग्रंथों का वर्णन एवं सार समाया है।  तात्कालिक परिस्थितियोंवश परिवार का एक सदस्य सिख बन जाता था।  आज भी एक ही परिवार में कोई सदस्य सिख व कोई गैर सिख है।  सिखों के अन्दर सभी धर्मों के लोग हैं और उनमे भी रोटी -बेटी के सम्बन्ध हैं। सभी सिख गुरु नानक देव जी के साथ साथ सभी सनातन धर्म के देवी-देवताओं का भी आदर सम्मान करते हैं तो फिर यह सवाल कहाँ से पैदा होता है की सिख हिन्दू धर्म से अलग हैं ?

जैनियों के प्रथम तीर्थंकर स्वामी ऋषभ देव जी से लेकर चौबीसवें  तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी तक सबने अध्यात्म की ऊंचाइयों को प्राप्त करते हुए तात्कालीन समाज में फैली हिंसा के विरुद्ध अहिंसा एवं सत्य का सन्देश दिया।  ईश्वर प्राप्ति के सरल सुगम मार्ग को खोजा।  जैन समाज में भी अन्य सनातनी हिन्दुओं के सभी मतावलंबियों के लोग शामिल हैं व सबमे ही रोटी - बेटी का सम्बन्ध है। ॐ शब्द का प्रयोग भी सभी जगह व्यापकता से हुआ है , फिर जैन भी हिन्दुओं से अलग कैसे हुए ?

आज सम्पूर्ण विश्व में अनेकोनेक विचार धारायें एवं उनके धर्म गुरु मौजूद हैं।  सदैव से ही महत्वाकांक्षी लोगों द्वारा अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए धर्म के साथ खिलवाड़ किया गया है।  तभी तो हर धर्म में अनेकानेक उप धर्म बन गये हैं जैसे इस्लाम में सिया -सुन्नी ,ईसाईयों में कैथोलिक-प्रोटेस्टैंट और हिन्दुवों में तो गिनती करना भी मुश्किल है जैसे कोई शैव मत,कोई कृष्णावलम्बि या कुछ और।  मगर इन सब विरोधाभाषों के बावजूद सब हिन्दू पहले हिन्दू हैं , धर्मावलम्बी उनकी अपनी पद्धति है।

हिन्दू धर्म की परिभाषा क्या है ?--
विद्वानों ने समय समय पर हिन्दू धर्म की अनेक परिभाषाएं बतलाई हैं। उनके अनुसार जो व्यक्ति अथवा धर्म “ ॐ “ की पूजा करे , उसे स्वीकार करे , पुनर्जन्म में विश्वास रखता हो, मानवता जिसके लिए सर्वोपरि हो ,गौ पूजा एवं गाय का संरक्षण ,पोषण करने वाला हो तथा भर्तिया मूल का हो , वह हिन्दू है , हिन्दू धर्म का ही अंग है चाहे वह किसी भी मत से जुडा हो।  आश्चर्य जनक सत्य है कि आर्य समाज , जैन , बोद्ध , सिख आदि सभी धर्मों एवं मतों के अनुयायी उपरोक्त सभी बातों का अनुसरण करते हैं।  इस प्रकार सभी लोग अपने अपने मत का पालन करते हुए भी हिन्दू ही हैं।  

अनेक मतों में रहकर भी , जो ॐ कार का ध्यान करे ,
आत्मा रहती अजर अमर , पुनर्जन्म का मान करे ।
गौ सेवा हो लक्ष्य जीवन का , मानवता अभिमान करे ,
मूल स्रोत्र भारत है जिसका , हिंदुत्व की पहचान करे ।

हमारा मानना है कि कुछ स्वार्थी नेताओं तथा कुछ धर्म गुरुओं ने अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए पहले हिन्दू धर्म को तोड़ा , फिर हिन्दू -मुस्लिम , हिन्दू - ईसाई के बीच दीवार खड़ी की।  जब इतने से भी उन्हें संतोष नहीं हुआ और उनके स्वार्थों की पूर्ती नहीं हुई तब उन्होंने हर धर्म को खंड -खंड करने और फिर खंड को भी विखंड करने का खेल शुरू कर दिया है।  संभवत: इसी कड़ी में शान्ति से रह रहे सनातन धर्म के अनुयाइयों जैन ,सिख ,बोद्ध हिन्दू ,दलित ,स्वर्ण , ऊँच -नीच व अगड़े -पिछड़े आदि में बाँट कर धर्म से अलग करने की साजिश की जा रही है।  

धर्म की व्याख्या एवं उसके उद्देश्यों को स्पष्ट कराती हमारी कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं ---

मानव जन्म यदि लिया है , सबकी अपनी जाति है ,
हर जाति के संग जुडी , धर्म की अपनी थाती है।
अपने धर्म का आदर करना , मानव की पहचान है ,
गैरों को भी आदर देना , धर्म का यही पैगाम है ।

आप किसी भी धर्म , मत अथवा संस्कृति क मानने वाले हों , हमारा उद्देश्य है कि कृपया मानवता के प्रति एक रहो , आपस में लड़ाने वाले राजनेताओं तथा धर्म के ठेकेदारों के प्रति अंध भक्ति नहीं बल्कि उनके विचरों पर चिंतन कर उनका अनुसरण करो।  
आओ हम सब मानवता को सर्वोपरि धर्म बनाएं , यही राष्ट्र धर्म है , यही सनातन धर्म है और यही है हिन्दू धर्म व हिंदुत्व का सार।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
“ विद्या लक्ष्मी निकेतन “
53 -महा लक्ष्मी एन्क्लेव ,
मुज़फ्फरनगर-251001 ( उत्तर प्रदेश )
08265821800

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