परिन्दे भी शाम ढले, थककर अपने घर को जाते हैं,
निज नीड में वापस आ, ख़ुशी का अहसास जताते हैं।
माना कि नहीं कर रहा, कोई प्रतीक्षा उनकी घर पर,
वृक्ष, डालियाँ, संगी-साथी, सब अपनापन जतलाते हैं।
कौन कहाँ क्या करता है, दिन भर कहाँ पर जाता है,
शाम ढले वापस आते ही, मिल गीत ख़ुशी के गाते हैं।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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