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Thursday, August 10, 2017

sabr ke baandh english translation

( SABRA KE BAANDH , DR A KIRTIVARDHAN KI RACHNAA KA ENGLISH ANUVAAD )


I DO NOT KNOW
WHY PEOPLE
MADE THEIR DAM OF PATIENCE
SO WEAK
WHICH BREAK
IN SMALL JERKS .


I DO NOT KNOW
WHY THEY DO NOT LIFT IT
ON THEIR OWN
WHY DO THEY NOT USE
IRON OF UNTRUTH AND DISHONESTY
WHY DO THEY NOT USE
THE BRICKS OF BELIEFS
AND AGAIN ON THAT
USE THE LAYER OF RELIGION


BELIEVE  IT
ACCORDING TO MY SAYING
MAKE A DAM
OF YOUR PATIENCE
IT WILL NEVER BREAK
IN EVERY PROBLEM
IT WILL BE
MORE STRENGTHEN


THE HISTORY OF GLORY
IN THE WORLD
WILL BE MADE .


SEE THE DAM OF PATIENCE
OF LEADERS
IS IT BROKEN ?
WHETHER IT IS THE ATTACK
ON PARLIAMENT
OR DESTRUCTION OF AKSHAR DHAAM
INSPITE OF THAT
THE DAM OF PATIENCE
IS NOT BROKEN .


WE SHALL GIVE THREAT
MAKE A NOISE
BUT WE ARE NOT ABLE TO CATCH
THE THIEF HIDDEN IN THE HOUSE


THAN
AFTER THE INCIDENT
THE DAM OF OUR PATIENCE
WILL BE MADE
MORE STRONGER
AND WE SHALL MAKE
A NEW HISTORY
OF THE POWER OF PATIENCE .


LET’S SEE
UNITED STATES OF AMERICA
HOW HELPLESS AND SAD
THE MASTER OF THE WORLD
IT HAS STRONG WILL POWER
BUT
IN THE MATTER OF PATIENCE
IT LACKS BEHIND
ONLY WITH THE DESTRUCTION OF
TOWERS
THE DAM OF ITS PATIENCE
CRUMBLED LIKE
THE WALL OF SAND


LOOK AT US
OUR TOWERS ARE DESTROYED
EVERYDAY
SOLDIERS DIE WITHOUT DEATH
ON THE BORDER
CHILDREN- OLD  AGED AND YOUTH
ALL DIE
EVERY DAY HAPPENS RAPES
WITH WIVES AND DAUGHTERS
INSPITE  OF THAT
OUR BORDERS OF PATIENCE
ARE NOT BROKEN


BECAUSE
WE HAVE USED THAT CEMENT IN THAT
THAT HAS BEEN MADE
IN THE FACTORY OF POWER
BY ALL POLITICAL PARTIES


DO NOT FRIGHTEN
HAVE PATIENCE
IF YOU ARE NOT ABLE
TO GET JUSTICE
IN THIS WORLD
THAN
YOU WILL GET IT
IN THE OTHER WORLD
GOD IS GREAT
AND
THIS IS THE SECRET
OF OUR GLORY .


HINDI KAVITA “ SABR KE BAANDH, BY DR A KIRTIVARDHAN-08265821800
TRANSLATED BY DR RAM SHARMA “ DAM OF PATIENCE “09219710874


DR A KIRTIVARDHAN
VIDHYA LAXMI NIKETAN
53,MAHALAXMI ENCLAVE
MUZAFFARNAGAR-251001, U P
a.kirtivardhan@gmail.com

Wednesday, November 11, 2015

deep

दीपोत्सव पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
दीप बनूँ और खुद जल जाऊं,
शिक्षा का अन्धकार मिटाऊं,
दे दो मुझको शक्ति इतनी, 
सारे जग से तम मैं मिटाऊं ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन

Tuesday, October 27, 2015

ashk hota kaun sa anmol

अश्क होता कौन सा, अनमोल हमसे पूछिए,
बेटे के दर्द का हाल, माँ के अश्क से पूछिए।
मिलन की चाह में, प्रेयसी तड़फती जब कहीं,
विरह के अश्कों का मोल, तब उससे पूछिए।

अ कीर्तिवर्धन

Sunday, October 25, 2015

mahangi daal par

मित्रों, आजकल दाल की बढ़ी कीमतों पर बहुत हल्ला मचा है, बात सही भी है। मगर देखने में यह भी आ रहा है कि हल्ला मचाने वाले वह गरीब लोग नहीं हैं जो इससे प्रभावित हैं बल्कि वह लोग ज्यादा हैं जिन्हे केवल राजनीति की रोटियाँ सेकनी हैं।
यह तो सच है कि सम्बंधित सरकारों को जमाखोरों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करनी चाहिए और जनता को राहत मिलनी चाहिए मगर कुछ इस पर भी विचार करें----------

सस्ता चिकन भी ले लो, दाल भी ले लो,
दस रुपये किलो प्याज और आलू भी ले लो,
मगर लौट आओ उस दौर की आमद पर,
उसी दौर की तनख्वाह, मजदूरी भी ले लो।

वो स्कूल की पढ़ाई, वो शिक्षा का मतलब,
वो संस्कारों का रोपण, वो इन्सां का मजहब,
वो त्योहारों पर बनते नए कपड़ों की खुशियाँ,
ईद- दिवाली थे तब भाई- चारे का मकतब।

वह माँ का हाथ से मठरी- लड्डू बनाना,
कम खर्च करके भी घर को चलाना ,
बाज़ार के महंगे नाश्ते-मिठाइयों को छोडो,
मिल जाएगा अच्छे दिनों का खजाना।

दिखावे की आदत को ज़रा त्याग देखो,
सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को भेजो,
मौसम की सब्जी व फल से हो गुजारा,
संतुष्टि का रास्ता तब वहाँ पर खोजो।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

 

Tuesday, October 20, 2015

kar rahaa maan ka apakaar tu

सम्मान लौटाने वाले नकली साहित्यकारों (  माफ़ करना जो सम्मान का अर्थ ही नहीं जानते वह साहित्यकार हो ही नहीं सकते ) को समर्पित ----

कर रहा मान का अपकार तू,
कह रहा खुद को कलमकार तू।
साहित्य जिसके लिए है साधना,
बिक रहा स्वार्थ के बाज़ार तू।

शोहरतें तुझको मिली सम्मान से,
सर तेरा तन गया था अभिमान से।
भेदभाव जब कलमकार करने लगा,
साहित्य सहम गया निज अपमान से।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

kar rahaa maan ka apakaar tu

सम्मान लौटाने वाले नकली साहित्यकारों (  माफ़ करना जो सम्मान का अर्थ ही नहीं जानते वह साहित्यकार हो ही नहीं सकते ) को समर्पित ----

कर रहा मान का अपकार तू,
कह रहा खुद को कलमकार तू।
साहित्य जिसके लिए है साधना,
बिक रहा स्वार्थ के बाज़ार तू।

शोहरतें तुझको मिली सम्मान से,
सर तेरा तन गया था अभिमान से।
भेदभाव जब कलमकार करने लगा,
साहित्य सहम गया निज अपमान से।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

Monday, October 19, 2015

पत्थरों के शहर में हम, फूलों की तमन्ना करते हैं,
पत्थर को बुत, बुत को भगवान बनाया करते हैं।
यह सच है कि मुसाफिर हैं हम, तेरे शहर में,
जिस राह से गुजरते हैं, मुकाम बनाया करते हैं।

डॉ अ कीर्तिवर्धन