गली-गली और हर कूंचे में कमल मिलेगा,
तालाबों में, हर पोखर में, अब कमल खिलेगा। 
खिलता रहा कीचड़ में तो कमल सदा ही,
मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारों में,अब कमल खिलेगा। 
आज़ादी का बिगुल बजा था रोटी और कमल से,
आज़ाद हुआ है हिन्द, सत्ता में भी कमल खिलेगा। 
डॉ अ कीर्तिवर्धन 
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