छंद का द्वन्द 
नहीं जानता , गीत किसे कहते हैं ,
छंदों की हो रीत ,मीत किसे कहते हैं ?
क्या छंद बिना कोई भावों को नहीं कह पायेगा ,
दृष्टिहीन ! नागरिक का अधिकार नहीं पायेगा ?
विधा कोई हो अच्छी हो सकती है ,
कहीं नयन , कहीं मन का सुख दे सकती है । 
गीत वही अच्छा , जो भावों को दर्शाता हो ,
पाठक भी जिसमे , पूरा रम जाता हो । 
भावों के तार जुड़ें हों तन मन से ,
गीतों का सार जुडा हो जन जीवन से । 
मानवता की खातिर प्रेरित कर जाए ,
गीत वही जो जन जन के मन को भाये । 
गीत ,कविता, ग़ज़ल और रुबाई हैं ,
संवादों की अनेक विधाएं आई हैं । 
कहीं हाइकु अपनी बातें करता है ,
जैसे गागर में सागर को भरता है । 
छंद युक्त कविता साहित्य का गहना है ,
बिना छंद ,निर्धनता में सहोदर बहना है । 
ममता और वात्सल्य दोनों में भरपूर है ,
दोनों की ही रगों में साहित्य का खून है । 
क्या निर्धन बहना मैके  में भी मान नहीं पाएगी ,
ससुराल में पीड़ित ,  कहीं त्राण नहीं पाएगी ?
छंदों से निर्धन , पर भावों से उत्तम रचना ,
क्या साहित्य में स्थान नहीं पाएगी ?
कुछ लोग पक्षधर हो सकते हैं सम्पन्नता के ,
निर्धन का अपमान करें ना तंज कसके । 
निर्धन ही मानवता का रखवाला है ,
संस्कृति और संस्कारों को ढोने  वाला है । 
फटेहाल गरीबी का जिसका जीवन है ,
रुखी रोटी खाकर भी हंसता बचपन है । 
ईमानदारी गर्व से वहां पर कड़ी हुई है ,
सम्पन्नता के घर मानवता सिसक रही है । 
सुन्दर रूप  सलोनी काया छंदों की हो ,
दर्प भरा हो ,  अहंकार छंदों का हो । 
गीत सलोना पर भाव नहीं दे सकता हो ,
कविता क्या ? छंद युक्त पर मानवता न हो । 
छंद धर्म आपका संकल्प अनूठा है ,
संकल्प रथ पर सवार कविता गीता है । 
गीता का गौरव गान करें, संकल्प हमारा है ,
छंद युक्त गीत , साहित्य को प्यारा है । 
केवल मीठा खाने से क्या स्वाद बनेगा ,
तुलना करने से ही मीठा अहसास बनेगा । 
कभी कसैला ,कभी हो खारा ,स्वाद बढेगा ,
मीठे को महिमा मंडित का आधार बनेगा । 
छंदों को महिमा मंडित का अभियान चलायें ,
संकल्प रथ में हो सवार ,गीत ,कविता गायें । 
बिना छंद कविता चर्चा में ना लायें ,
खुद हों सम्मानित, दूजे का ना मान घटाएं । 
chhand kaa
डॉ अ कीर्तिवर्धन 
 
 
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