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Saturday, August 16, 2008

नदी

मैं नदी हूँ
सागर मे समाकर
खारी हो जाउंगी ।
अपना वजूद मिटाकर
मैं भला क्या पाउंगी?
आज मेरे जल से
प्यासे की प्यास बुझती है
सागर बनकर क्या मैं
प्यास बुझा पाउंगी
खेतों को पानी दे पाउंगी?

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