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Monday, August 11, 2008

नारी (१९७८ मे लिखित )

नारी नहीं विलास का साधन
वह है केवल प्रेरणा पावन
दिव्य शक्ति वह माया अद्भुत
सृष्टि की उत्तम रचना है।
बिन नारी नहीं हो सकता
स्रष्टि का विकास सम्भव।
नारी मे ही चिरंतन प्रकाश पुंज
श्वास लेता है प्रथम।
उसी के अंक मे ,विभु के
अंग करते अनुभव सिहरन।
नारी के पावन आँचल मे ही
सर्वेश्वर की लीला होती।
इसीलिए कहता है "कीर्ति"
नारी नही मात्र भोग की वस्तु
वह है पूजा और न दूजा
फिर भी उसका नाम अधूरा .

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