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Thursday, August 6, 2009

दो रचनाएं

kirtiverdhan:
दुनिया में लाखों लोग मर कर भी जिंदा है.
इन्शान खुश हैं,आदमी शर्मिंदा हैं.
करते चलो नेक काम जहाँ में
धडकनों का मतलब खत्म हो जाता है.



kirti:
kirtiverdhan:

नये दौर के इस युग में
सब कुछ उल्टा पुल्टा है
महंगी रोटी सस्ता मानव
जगह जगह पर बिकता है.
कहीं पिंघलते हिम पर्वत तो
हिम युग का अंत बताते हैं,
सूरज की गर्मी भी बढ़ती
अंत जहाँ का दिखता है.
अबला भी अब बनी है सबला
अंग परदर्शन खेल में
नैतिकता का अंत हुआ है
जिस्म गली में बिकता है.
रिश्तो का भी अंत हो गया
भौतिकता के बाज़ार में
कौन पिता और कौन है भ्राता
paise से बस रिश्ता है.
भ्रष्ट आचरण आम हो गया
रुपया पैसा खास हो गया
मानवता भी दम तोड़ रही
स्वार्थ दिलों में दिखता है.
पत्नी सबसे प्यारी लगती
ससुराल भी न्यारी लगती
मात पिता संग घर में रहना
अब तो दुष्कर लगता है.

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