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Friday, January 1, 2010

कवायद kavaayad

कवायद

जब जब जिंदगी में हादसे देखा करता हूँ,
भगवान में अधिक विश्वास करने लगता हूँ।
जाने किस गुनाह की सजा किसको मिली है,
मैं संभल संभल कर चलने लगता हूँ।
क्या है मकसद जीने का, मैं नहीं जानता,
पर गुनाहों से तौबा किया करता हूँ।
उलझ कर दुनियां के झमेलों में, इंसान न बन सका,
पर आदमी बनने की कवायद किया करता हूँ।
आदमी मिलना भी नहीं आसान यहाँ है,
दरिंदों की भीड़ में आदमी खोजा करता हूँ।
जानवरों को देते हैं वो गालियाँ अक्सर,
मैं जानवरों में भी इन्सान खोजा करता हूँ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

a.kirtivardhan@gmail.com
kirtivardhan.blogspot.com
www.samaydarpan.com (e magazine)

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