इश्क .... दौलत की तराजू , इश्क नहीं चढ़ता, जिस्म तुलता है, इश्क नहीं तुलता| जुदा हो सकते हैं, इश्के यार मजबूरी मे, मगर इश्क जुदा हो नहीं सकता| इश्क का सौदा मिलता ,फकत जाँ देके, तेरे मेरे का भेद रहा नहीं करता| कहता है खुद को इश्के सौदाई, और जाँ देने से बचता फिरता| रूह से रूह का मेल है इश्क होना, जिश्मों से इश्क हुआ नहीं करता| बन जाते हैं 'मीरा ' से दीवाने, इश्क का मर्म जब कोई समझता| पाने की ख्वाहिस नहीं रहती कुछ भी, सब खोना ही इश्क का मतलब बनता| डॉ अ कीर्तिवर्धन ९९११३२३७३२
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