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Saturday, March 10, 2012

sankalp

संकल्प
एक दिन बाती ऩे सोचा ,मैं खुद को जलाती हूँ,
तेल अपने दीपक से लेती,और तम को मिटाती हूँ |
अंधेरों ऩे किसी साजिश से ,आँधियों से दोस्ती की,
और उन्होंने बेवज़ह ही,बार-बार मुझको बुझाया|
आज मैंने दिल मे अपने,यह इरादा कर लिया है
रौशनी को यह जता दूँ,आँधियों की चाल क्या है?
रात का नीरव अँधेरा,और बाती जल रही थी,
तम को मिटने के लिए,खुद से ही वह लड़ रही थी|
आंधी का एक झोंका,और बाती उड़ चली थी|
फूँस पर जाकर गिरी वह,और आग वहां पर लग गई|
सोचा था बाती बुझ जाएगी,अंधेरों का राज होगा,
आज तो शोला बनी ,अंधेरों को निगल रही थी|
जितना चाहा आँधियों ऩे,मिटाना वजूद उस आग का,
वह और बढ़ती गई, फिर दावानल बनी|
इस तरह मिट गया जब,वजूद अंधकार का,
आँधियों का भी गुरुरतब,इस धरा मे मिल गया|

डॉ अ कीर्तिवर्धन
९९११३२३७३२

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