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Monday, September 24, 2012

mumtaj ki vyatha

मुमताज कि व्यथा ...
बना कर कब्र मेरी,जहाँपनाह ने
मोहब्बत का हसीन तोहफा दिया,
जीते जी मैं महारानी थी
मरने पर कातिल बना दिया |

कब्र पर मेरी आने वाले
सजदे में फूल नहीं लाते हैं,
डाल कर चंद सिक्के वहां पर
मेरी बेबशी का मजाक उड़ाते हैं |

बनाकर नायब ताजमहल जहाँपनाह ने,
अपनी मोहब्बत को ज़माने को दिखलाया |
पर कलम करके हाथ हुनरमंदों के,
मुझे कातिल बना डाला |

सुला कर "ताज " में मुझको,मेरे मालिक ने
नींद से भी बेदखल कर डाला ,
अच्छा सिला दिया मेरी मोहब्बत का,
कफ़न मेरा खून से रंग डाला |

न जाने कितनी आहें हैं
मेरे जिस्म से लिपटी हुई,
गुनाहों का बोझ सीने पर
पावों से मैं कुचली गई |

न जाने कब ख़त्म होगी,
सजा मेरे गुनाहों कि,
होउंगी कैद से रुखसत
नींद मुझको भी आएगी |

डॉ अ कीर्तिवर्धन
८२६५८२१८००

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