बज्रांग धाम ( हनुमद्धाम ) शुक्रताल ( मुज़फ्फरनगर )
फाल्गुन पूर्णिमा संवत 2042 को श्रीमत चैतन्य महाप्रभु का 500 वां जन्म दिवस था | चाकुलिया (बिहार) में 511 दिन तक चलने वाले इस उत्सव में देश के अनेकों संतों के साथ श्री सुदर्शन जी महाराज भी मौजूद थे, वही इस आयोजन के निर्देशक भी थे | संतों की इस संगोष्ठी में भगवान राम नाम को कागजों पर लिपिबद्ध करने की चर्चा हुई तथा पांच करोड़ राम नाम लिखने का लक्ष्य बनाया गया | उपरोक्त कार्यक्रम की समाप्ति से पूर्व ही राम नाम लिखने का यह लक्ष्य पूर्ण हो गया | अब चर्चा इस बात पर प्रराम्भ्हुई किपूजित भगवान राम नाम का यह विशाल संग्रह सुरक्षित कैसे रखा जाए ?
अनेक सुझावों व चर्चाओं के उपरांत श्री सुदर्शन "चक्र" जी महाराज के सुझाव कि " श्री राम नाम रसिक श्री हनुमान जी स्वयं में राम नाम साधना कीसाक्षात् प्रतिमूर्ति हैं | उनके रोम रोम में श्री राम नाम समाहित है | क्यों न किसी पवित्रतम स्थान पर श्री हनुमान जी का विशाल विग्रह निर्मित कराया जाये ,जिनके अंग-प्रत्यंग में यह करोडो भगवान राम नाम सदा सदा के लिए सुरक्षित कर दिए जाएँ |" श्री चक्र जी महाराज के इस पवित्र विचार का सभी ने स्वागत किया और हनुमद्धाम बनाने के वास्ते रूप रेखा तैयार की जाने लगी |
स्थापना स्थल की खोज --
देश के सभी हिस्सों में इस अद्भुत बज्रांग धाम के निर्माण के लिए उचित स्थान की खोज की जाने लगी | अंत में श्री चक्र जी महाराज के बाल सखा एवं अभिन्न मित्र अनन्त श्री अखंडानंद जी सरस्वती महाराज ,वृन्दावन ( अध्यक्ष -भारत साधू समाज ) के साथ चर्चा के पश्चात् श्री मद्भागवत उदगम स्थली शुक्र तीर्थ पर राम भक्त हनुमान का विशाल विग्रह बनाने का निर्णय लिया गया | जिसके निर्माण का दायित्व शुकतीर्थ के श्री राम आध्यात्मिक प्रन्यास को , जिसके संस्थापक महँ कर्मयोगी नै. ब्र. श्री इंद्रा कुमार जी ( अब स्वामी केशवानंद जी ) जिन्हें साधू समाज में विश्वकर्मा की सिद्धि प्राप्त माना जाता है, को दिया गया | स्वामी जी की प्रेरणा से शुक्रतीर्थ पर विशाल विग्रह के निर्माण के हेतु भूमि श्री राम भक्त ,नरेला(दिल्ली) निवासी श्री राजेंदर प्रसाद सिंघल जी ने श्रीराम आध्यात्मिक प्रन्यास को प्रदान की |
श्री हनुमान जी का विग्रह --प्रांगण
श्री हनुमान जी के विग्रह निर्माण के लिए शिलान्यास 26 मई 1986 को हुआ | विग्रह निर्माण के लिए शहडोल (मध्य प्रदेश ) के सुविख्यात मूर्तिकार श्री केशव राम को बुलाया गया |
हनुमद्धाम का प्रांगण14 हज़ार वर्ग फुट का है | प्रांगण की उत्तरी सीमा पर बरामदा है | सतह से चार फुट ऊँचा 3600 वर्ग फुट का चबूतरा है | इस चबूतरे पर आठ फुट ऊँची पीठिका पर श्री हनुमान जी का विशाल विग्रह शोभायमान है | जो चरणों से मुकुट तक 65 फुट 10 इंच ऊँचा है | परन्तु सतह से विग्रह की पूरी ऊंचाई 77 फुट है जो अब तक भारत में बनी श्री हनुमान जी की अन्य प्रतिमाओं में सबसे ऊँची है | इस विग्रह के अन्दर भारत की विभिन्न लिपियों में कागज पर लिखे 700 करोड़ भगवान राम नाम समाहित हैं | इनका वजन 14 तन है और जिन कागजों पर भगवत नाम अंकित है उसका क्षेत्रफल 10050 घन फुट है | ये तमाम राम नाम के कागज प्लास्टिक पोलीथिन आवरण में सुरक्षित करके विग्रह में स्थापित किये गए हैं |
फाल्गुन पूर्णिमा संवत 2042 को श्रीमत चैतन्य महाप्रभु का 500 वां जन्म दिवस था | चाकुलिया (बिहार) में 511 दिन तक चलने वाले इस उत्सव में देश के अनेकों संतों के साथ श्री सुदर्शन जी महाराज भी मौजूद थे, वही इस आयोजन के निर्देशक भी थे | संतों की इस संगोष्ठी में भगवान राम नाम को कागजों पर लिपिबद्ध करने की चर्चा हुई तथा पांच करोड़ राम नाम लिखने का लक्ष्य बनाया गया | उपरोक्त कार्यक्रम की समाप्ति से पूर्व ही राम नाम लिखने का यह लक्ष्य पूर्ण हो गया | अब चर्चा इस बात पर प्रराम्भ्हुई किपूजित भगवान राम नाम का यह विशाल संग्रह सुरक्षित कैसे रखा जाए ?
अनेक सुझावों व चर्चाओं के उपरांत श्री सुदर्शन "चक्र" जी महाराज के सुझाव कि " श्री राम नाम रसिक श्री हनुमान जी स्वयं में राम नाम साधना कीसाक्षात् प्रतिमूर्ति हैं | उनके रोम रोम में श्री राम नाम समाहित है | क्यों न किसी पवित्रतम स्थान पर श्री हनुमान जी का विशाल विग्रह निर्मित कराया जाये ,जिनके अंग-प्रत्यंग में यह करोडो भगवान राम नाम सदा सदा के लिए सुरक्षित कर दिए जाएँ |" श्री चक्र जी महाराज के इस पवित्र विचार का सभी ने स्वागत किया और हनुमद्धाम बनाने के वास्ते रूप रेखा तैयार की जाने लगी |
स्थापना स्थल की खोज --
देश के सभी हिस्सों में इस अद्भुत बज्रांग धाम के निर्माण के लिए उचित स्थान की खोज की जाने लगी | अंत में श्री चक्र जी महाराज के बाल सखा एवं अभिन्न मित्र अनन्त श्री अखंडानंद जी सरस्वती महाराज ,वृन्दावन ( अध्यक्ष -भारत साधू समाज ) के साथ चर्चा के पश्चात् श्री मद्भागवत उदगम स्थली शुक्र तीर्थ पर राम भक्त हनुमान का विशाल विग्रह बनाने का निर्णय लिया गया | जिसके निर्माण का दायित्व शुकतीर्थ के श्री राम आध्यात्मिक प्रन्यास को , जिसके संस्थापक महँ कर्मयोगी नै. ब्र. श्री इंद्रा कुमार जी ( अब स्वामी केशवानंद जी ) जिन्हें साधू समाज में विश्वकर्मा की सिद्धि प्राप्त माना जाता है, को दिया गया | स्वामी जी की प्रेरणा से शुक्रतीर्थ पर विशाल विग्रह के निर्माण के हेतु भूमि श्री राम भक्त ,नरेला(दिल्ली) निवासी श्री राजेंदर प्रसाद सिंघल जी ने श्रीराम आध्यात्मिक प्रन्यास को प्रदान की |
श्री हनुमान जी का विग्रह --प्रांगण
श्री हनुमान जी के विग्रह निर्माण के लिए शिलान्यास 26 मई 1986 को हुआ | विग्रह निर्माण के लिए शहडोल (मध्य प्रदेश ) के सुविख्यात मूर्तिकार श्री केशव राम को बुलाया गया |
हनुमद्धाम का प्रांगण14 हज़ार वर्ग फुट का है | प्रांगण की उत्तरी सीमा पर बरामदा है | सतह से चार फुट ऊँचा 3600 वर्ग फुट का चबूतरा है | इस चबूतरे पर आठ फुट ऊँची पीठिका पर श्री हनुमान जी का विशाल विग्रह शोभायमान है | जो चरणों से मुकुट तक 65 फुट 10 इंच ऊँचा है | परन्तु सतह से विग्रह की पूरी ऊंचाई 77 फुट है जो अब तक भारत में बनी श्री हनुमान जी की अन्य प्रतिमाओं में सबसे ऊँची है | इस विग्रह के अन्दर भारत की विभिन्न लिपियों में कागज पर लिखे 700 करोड़ भगवान राम नाम समाहित हैं | इनका वजन 14 तन है और जिन कागजों पर भगवत नाम अंकित है उसका क्षेत्रफल 10050 घन फुट है | ये तमाम राम नाम के कागज प्लास्टिक पोलीथिन आवरण में सुरक्षित करके विग्रह में स्थापित किये गए हैं |
अच्छी जानकारी ..
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