Pages

Followers

Wednesday, October 24, 2012

deepawali-1

दीपावली पर्व.........

यह सर्व विदित है कि भारत त्योहारों का देश है | भारत भूमि पर 36  करोड़ देवी देवता निवास करते हैं | इसीलिए यहाँ का प्रतिदिन ही नहीं प्रतिपल भी उत्सवों का पल है | भारत में प्रत्येक उत्सव के  आयोजन के लिए निश्चित समय का महत्त्व व कारण मौजूद हैं | प्रत्येक त्यौहार के आयोजन का समय व कारण विज्ञान कि वर्तमान कसौटी पर खरा-परखा है | प्रत्येक वर्ष फागुन माह में होली तथा कार्तिक अमावस्या को दीपावली का आयोजन भारत ही नहीं ,विश्व के प्रत्येक भाग में रहने वाले भारतियों द्वारा उल्लास से किया जाता है |
दीपावली क्यों मनाई जाती है ? यह जानने के लिए हमें अपने ऋषि -मुनियों के चिंतन पर विचार करना होगा जो कि प्राचीन काल के वैज्ञानिक थे और नगरों से दूर वनों में अपने आश्रमों में शोधकार्यों द्वारा जनकल्याण के उपाय खोजा करते थे | उनके द्वारा खोजे गए सिधांत ,उपाय आज भी अटल हैं | उन महामानवों ने अपने शोध विषयों को जनमानस से जोड़ने के लिए धर्म,त्यौहार व पर्व विशेष का सहारा लिया | उदहारण के लिए --हिन्दू धर्म में पीपल वृक्ष पर देवता / भूत-प्रेत होने कि बात कहकर उसे काटने पर प्रतिबन्ध लगाया गया है, साथ ही उसके निचे सफाई व पूजा का प्रावधान भी किया गया है | जबकि इसका मूल कारण पीपल द्वारा 24 घंटे प्राण वायु ऑक्सीजन का सृजन था ,जिसे वर्तमान विज्ञानं भी स्वीकार करता है |
 अब दीपावली पर्व कि बात करने से पहले कुछ बात धनतेरस यानी धन्वन्तरी त्रयोदशी के बारे में भी बता दूँ  |पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र मंथन के समय अमृत कलश धारण किये भगवन धन्वन्तरी प्रकट हुए थे | भगवन धन्वन्तरी ही आयुर्वेद के जनक कहे जाते हैं  और यह ही देवताओं के वैध भी माने जाते हैं | कार्तिक कृषना त्रयोदशी उन्ही भगवन धन्वन्तरी का जन्म दिवस है जिसे बोलचाल कि भाषा में धनतेरस कहते हैं |  सभी सनातन धर्म के अनुयाई भगवन धन्वन्तरी जी के प्रति इस दिन आभार प्रकट करते हैं | भगवन धन्वन्तरी का गूढ़ वाक्य आज भी आयुर्वेद में प्रमुखता से प्रयोग किया जाता है----
"यस्य देशस्य यो जन्तुस्तज्जम तस्यऔषधं  हितं |
अर्थात जो प्राणी जिस देश व परिवेश  में उत्पन्न हुआ है उस देश कि भूमि व जलवायु में पैदा जड़ी  -बूटियों से निर्मित औषध ही उसके लिए लाभकारी होंगी |
इस गूढ़ रहस्य को हमारे मनीषियों ने समझा और उसी के संकल्प का दिन है " धनतेरस " | यह अलग बात है कि अनेक कारणों से वर्तमान में आयुर्वेद का प्रचार -प्रसार धीमा पद गया है | इस धनतेरस पर हम संकल्प लें कि भगवन धन्वन्तरी जी द्वारा स्थापित आयुर्वेद चिकित्सा का यथा संभव प्रचार-प्रसार एवं संरक्षण कर सुखी ,समृद्ध राष्ट्र का निर्माण करें |  आज ही के दिन प्रदोष काल में  यम के लिए दीप दान एवं नैवेध अर्पण करने का प्रावधान है | कहा जाता है कि ऐसा करने से अकाल मृत्यु से रक्षा होती है | मानव जीवन को अकाल मृत्यु से बचने के लिए दो वस्तुएं ही आवश्यक हैं --प्रकाश = ज्ञान तथा नैवेध =समुचित खुराक | यदि यह दोनों वस्तुएं प्रचुर मात्र में दान दी जाएँ तो निश्चय  ही देशवासी अकाल मृत्यु से बचे रहेंगे |

No comments:

Post a Comment