दोस्तों एक कविता आधुनिक बेटी पोस्ट कर रहा हूँ ,अपने दिल्ली प्रवास के
दौरान बहुत कुछ देखा और समझा,उन्ही अनुभवों की प्रतिक्रिया है यह कविता |
निश्चय ही अभी हमारा समाज सम्पूर्ण ख़राब नहीं हुआ है, मगर बदलाव की बयार चल
रही है, यहाँ मेरा आशय किसी माँ,बहन,या बेटी का दिल दुखाना नहीं है अपितु
एक वर्तमान के सच से परिचय करने का प्रयास है.
आधुनिक बेटी-----
आज बेटी हुनरबंद हो गई है ,
पढ़ लिख कर पैरों पर खड़ी हो गई है |
रहती थी निर्भर सदा दूसरों पर,
आज माँ-बाप का सहारा हो गई है |
साहस से अपने दुनिया बदलकर ,
हर कदम पर बेटी विजयी हो गई है |
क्या खोया-क्या पाया,जरा यह विचारें,
आज बेटी जहाँ में बेटा सी हो गई है |
वात्सल्य और मातृत्व सुख को भुलाकर ,
पैसों की दौड़ में बेटी खो गई है |
चाहती नहीं वह माँ बनना देखो,
आज बेटी बंजर धरती हो गई है |
बनाये रखने को अपना शारीरिक सौंदर्य ,
बेटी ही भ्रूण की हत्यारिन हो गई है |
चाहती आज़ादी सामाजिक मूल्यों से,
आज बेटी खुला बाज़ार हो गई है |
जिस घर में बेटी ब्याह कर गई है,
उस घर में खड़ी दीवार हो गई है |
बिन ब्याह संग रहना और नशा करना,
आधुनिक बेटी की शान हो गई है |
थे प्यारे जो माँ-बाप कल तक,
आज निगाहें मिलाना दुश्वार हो गई है |
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
आधुनिक बेटी-----
आज बेटी हुनरबंद हो गई है ,
पढ़ लिख कर पैरों पर खड़ी हो गई है |
रहती थी निर्भर सदा दूसरों पर,
आज माँ-बाप का सहारा हो गई है |
साहस से अपने दुनिया बदलकर ,
हर कदम पर बेटी विजयी हो गई है |
क्या खोया-क्या पाया,जरा यह विचारें,
आज बेटी जहाँ में बेटा सी हो गई है |
वात्सल्य और मातृत्व सुख को भुलाकर ,
पैसों की दौड़ में बेटी खो गई है |
चाहती नहीं वह माँ बनना देखो,
आज बेटी बंजर धरती हो गई है |
बनाये रखने को अपना शारीरिक सौंदर्य ,
बेटी ही भ्रूण की हत्यारिन हो गई है |
चाहती आज़ादी सामाजिक मूल्यों से,
आज बेटी खुला बाज़ार हो गई है |
जिस घर में बेटी ब्याह कर गई है,
उस घर में खड़ी दीवार हो गई है |
बिन ब्याह संग रहना और नशा करना,
आधुनिक बेटी की शान हो गई है |
थे प्यारे जो माँ-बाप कल तक,
आज निगाहें मिलाना दुश्वार हो गई है |
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
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