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Saturday, November 10, 2012

खाली हाथ है जेब भी खाली, फिर भी मना रहे दिवाली,
मन बगिया में सुनापन था,सपने सजा रहा है माली |
भौतिकवादी इस युग में ,मृग तृष्णा है मतवाली,
अध्यात्म की जोत जली जब,संतुष्टि लाई खुशहाली |
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

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