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Sunday, December 30, 2012

bachpan ke vo din

बचपन के दिन
मुझे याद है
बचपन के वो दिन
कागज की कश्ती बनाकर
पानी में तैरना
बरसात के दिनों में
उमड़ते-घुमड़ते बादलों के बीच
कल्पना के घोड़े दौड़ना
और
मनचाहे चरित्रों को तलाशना |

हाँ मुझे याद है
फर्श पर पानी का फैलाना
छप-छप करना
मान का गुस्सा
दादी का प्यार
बहन का दुलार
सब याद है मुझे |

मैं आज भी
आकाश में ताका करता हूँ
बादलों के बीच
अपनी कल्पना तलाशा करता हूँ |
मुझे याद है
बरसात के बाद
इन्द्रधनुष का दिखना
उसके रंगों में
अपने मन को रंगना
कहीं पीछे से
सूरज की किरण का चमकना
फिर
सुनहरे बादलों में
अपने सतरंगी ख्वाब बुनना |

हाँ मुझे याद है
उन्ही बादलों के बीच
पशु -पक्षियों  की
आकृति   तलाशना |

मैं नहीं  भुला
अपना  बचपन
फिर भी विवश  हूँ
बचपन में   न लौट  पाने के कारण |

चाहता हूँ मैं
फिर से बनाऊं
रेट के घरोंदे

मिटटी में खेलूं
दौडूँ-भागूं
लुका छिपी खेलूं |
हाँ मैं बचपन में लौटना चाहता हूँ |

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

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1 comment:

  1. sach apki rachna mujhe fir se bachpan ke galiyare me ghuma le ayi ,, oh kitne pyare the wo din .. anmol ... ek ek chhawi ghum gayi chalchitra ki tarah ... abhari hu apki ... :)

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