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Saturday, January 12, 2013

tumhare jaane ke baad

तुम्हारे जाने के बाद......(एक सच्ची घटना पर आधारित )

मैं खोयी थी 
अपने इन्द्रधनुषी सपनों में
अचानक 
बादलों की एक गडगडाहट ऩे
मुझे तुमसे मिला दिया। 
लेकिन मैं कभी मन से
तुम्हारी न बन सकी। 
तुम्हारा नियंत्रण मेरी देह पर था,
परन्तु मन आज भी
उन्ही इन्द्रधनुषी सपनों मे
रंगा हुआ था।
धीरे धीरे
हमारे बीच दूरियाँ बढ़ने लगी,
बात बेबात तकरारे बढ़ने लगी,
आँगन मे गुलाब के साथ
कैक्टस भी फलने फूलने लगा।
और एक दिन
जब तुम चले गए
मुझे छोड़कर तन्हा
कहीं दूसरे शहर मे,
उस दिन मैं बहुत खुश थी
चलो रोज की चिक-चिक से
छुटकारा तो मिला।
मगर
रात भर मैं सो ना सकी,
सोचती रही
पता नहीं तुम कहाँ होंगे,
किस हाल मे होंगे ?
मैंने देखा
कि तुम अपना कोट भी तो
नहीं ले गए थे
सर्दी मे कैसे होंगे ?
यही सोचते सोचते
तुम्हारे कोट को
हाथ मे लेकर बैठी रही।
सच कहूँ
मैं पूरी रात सो ना सकी।
मुझे याद आया
उस दिन आलू-टमाटर कि सब्जी मे
नमक ज्यादा गिर गया था
तुमने कहा था
'नमक ज्यादा हो गया है'
मैं चिल्लाई थी
"तुमको बाज़ार का खाना अच्छा लगता है,
मेरे हाथ का कहाँ ?"
फिर तुम चुपचाप खाना खाकर
चले गए थे।
तुम्हारे जाने के बाद
जब खाया था मैंने खाना
तो पता चला था
सचमुच नमक बहुत ज्यादा था
फिर कभी आपने शिकायत नहीं की
चाय फीकी या सब्जी मे नमक की।
मुझे याद आ रहा है
तुम्हारा दफ्तर से आते ही
कंप्यूटर लेकर बैठ जाना,
और अपने काम मे लग जाना।
मैं सोचा करती
इस आदमी को मुझसे कोई मतलब नहीं,
बस रात को अपनी इच्छा पूर्ति के लिए
मेरी जरुरत !
तुम्हारे जाने के बाद
मुझे लगा
कि तुम ही मेरी
धड़कन बन चुके थे।
मैंने कंप्यूटर के की बोर्ड पर
अहसास किया
तुम्हारी अँगुलियों का।
मुझे याद आया
तुम सुनाते थे
अपनी कविता
सबसे पहले मुझे
और मैं चली जाती थी
बीच मे ही
कुछ काम करने
सुनना बीच मे छोड़ कर।
फिर तुमने बंद कर दिया था
धीरे-धीरे कविता सुनाना,
और
अधिक समय देने लगे थे
अपने कंप्यूटर पर भी।

आज मुझे याद आया
शादी के बाद
मेरा पहला जन्म दिन
लाये थे खरीदकर
मेरे लिए एक साडी
गुलाबी रंग की
और मैंने कहा था
"यह क्या रंग उठा लाये,
महरून होता तो अच्छा लगता"
तुमने कुछ नहीं कहा,
बस चुप रहे थे लेकिन
उसके बाद
किसी भी जन्म दिन पर नहीं लाये
कोई उपहार,
मेरे लिए
और कहा था
"अपने लिए एक साडी खरीद लेना ,
अगले महीने तुम्हारा जन्म दिन है"
मैंने नहीं समझा था
इस बात का मतलब
और तुम्हारी पीड़ा,
और लाती रही हर बार नई साडी ,
अपने जन्म दिन पर।
मगर आज लगता है
कहीं कुछ गलत था
मेरे उस व्यवहार मे।
मुझे यह भी याद आ रहा है
आज तुम्हारे जाने के बाद
कि तुम लाये थे एक अंगूठी
और छुपा दी थी
तकिये के नीचे,
शादी कि सालगिरह पर।
मैंने कहा था
"अच्छी है"
मगर साथ ही कहा था
"मुझे इस बार हीरे के टोप्स चाहिए"
और तुम चले गए थे
चुपचाप बाहर
बिना कुछ कहे।
शायद
मैं समझती थी
अपना अधिक अधिकार
और नहीं समझ पायी थी
तुम्हारा वह अनकहा प्यार
जो देना चाहते थे
तुम मुझे
हर बार,बारबार,बारम्बार।
एक बार
तुम्हारे मित्र की पत्नी ऩे की थी
शिकायत
अपने पति की,
हम दोनों के सामने
"ये तो किसी अवसर पर
कोई उपहार देते ही नहीं"
तब मुझे लगा था
कि तुम बहुत अच्छे हो
मगर
कह ना सकी तुम्हारे सामने
वह सब जो मन मे था
ना जाने क्यों ?

शादी से पूर्व
मैं अक्सर देखा करती थी
सुनहरे सपने
किसी राजकुमार के।
तुम कभी भी नहीं बन सके थे
मेरे सपनों के राजकुमार।
और मेरे ख्वाब
टूटते गए थे।
आज तुम्हारी जुदाई ऩे
मुझे अहसास दिलाया
कि तुम
मेरे सपनों के राजकुमार ना सही
मगर
मेरी आवश्यकता बन चुके थे।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

2 comments:

  1. एक ऐसी सच्चाई जिसे हम अनदेखा कर जाते हैं और जब समझते हैं तब तक बहुत देर हो चुकी हो्ती है।

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  2. jee vandana ji, yahi hai samaj ka darpan , kuchh had tak is prakar ki ghatnayen hamare charon aur hoti hain
    aapka dhanyawad

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