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Tuesday, February 12, 2013

naari

नारी

संभालती रही वह उम्र भर रिश्तों को ,
बहन,बेटी,पत्नी,माँ,बहु सास बनती वो
भुला कर अपना वुजूद ,फ़र्ज़ की वेदी पर ,
चुकाती रही प्यार की सब किश्तों को ।

कौन कहता है कि  बिखरी है वह कंकर सी ,
रह गई है किसी ढहते हुए खँडहर सी ?
उसने उम्र भर एक इतिहास लिखा है,
शीतल हवा सी है,नहीं किसी बवंडर सी ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

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