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Saturday, March 23, 2013

dushman ki vafaa

दुश्मन और दोस्त

दुश्मनों की वफ़ा पर भरोसा है मुझको,

दुश्मनी निभाना बखूबी जानते हैं वो।

दोस्तों का क्या भरोसा ,कब बदल जाएँ

मुश्किल में राह बदलना जानते हैं वो ।

नहीं मार सका मुझे कोई दुश्मन आज तक ,

दोस्तों के इंतज़ार में जागता रहा हूँ रात भर ।

भरोसा था वो आयेंगे ,मुश्किल में साथ मेरे,

कोई आया नहीं अभी तक,निगाहें हैं राह पर ।

दुश्मनों ने तो वफ़ा , अपनी खूब निभाई ,

मुझसे ताउम्र दुश्मनी निभायी ।

दोस्त जाने कितने आये चले गए,

दोस्ती किसी ने ना, दुश्मनों सी निभायी ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

8265821800

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