हंस आज भी हंस है , सहकर भी अपमान ,
कौवा हंस ना बन सका ,गाकर स्वार्थी गान ।
माना झूठ और स्वार्थ की , फ़ैल रही है बेल ,
लेकिन कुछ पल जिंदगी ,कुछ पल का खेल ।
कौवा कभी चल ना सका ,देखो हंस की चाल ,
भूला अपनी चाल भी ,और हाल हुआ बेहाल ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
कौवा हंस ना बन सका ,गाकर स्वार्थी गान ।
माना झूठ और स्वार्थ की , फ़ैल रही है बेल ,
लेकिन कुछ पल जिंदगी ,कुछ पल का खेल ।
कौवा कभी चल ना सका ,देखो हंस की चाल ,
भूला अपनी चाल भी ,और हाल हुआ बेहाल ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800
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