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Saturday, May 25, 2013

hans aaj bhi hans hai

हंस  आज भी हंस  है , सहकर भी अपमान ,
कौवा हंस ना बन सका ,गाकर स्वार्थी गान ।

माना झूठ  और स्वार्थ की , फ़ैल रही है बेल ,
लेकिन कुछ पल जिंदगी ,कुछ पल का खेल ।

कौवा कभी चल ना सका ,देखो हंस की चाल ,
भूला अपनी चाल  भी ,और हाल हुआ बेहाल ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन
8265821800

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