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Thursday, May 30, 2013

naganataa par

"जब अपने जिस्म से फैंको हो नोच-नोच कबा ,
अस्मतो -आबरुरेजी का ये रोना कैसा ?"(अज्ञात)
दोस्तों ,"शैल सुत्र "पत्रिका की संपादिका श्रीमती आशा शैली जी ने वर्तमान हालत  और नग्नता की और बढ़ती फैशन परस्ती पर चर्चा करते हुए ,भारतीय संस्कारों के महत्त्व पर सुन्दर सम्पादकीय लिखा है ।उन्हे नमन करता हूँ ।
उनकी लिखी दो लाइन देखिये---
नारी आखिर तुम्हारी वही कहानी ,
 ऐसा ही होगा गर छोड़ी न नादानी ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन



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