Pages

Followers

Friday, May 24, 2013

vedana

दोस्तों ,यह एक ऐसी रचना है ,ऐसा विषय है जिस पर आज तक कभी भी कुछ लिखा ही नहीं गया है , स्त्री मन के कुछ पलों को पढने का प्रयास ...............
वेदना
प्रत्येक माह मे एक बार
तीन  चार दिन के लिए
जब पीड़ित होती हूँ
एक वेदना से
टूटता है बदन मेरा
आहत होती हूँ मैं
दर्द न सहने से
जब मुझे आवश्यकता होती है
किसी की संवेदनाओं  की
चाहत होती है
तुम्हारी बाहों मे समा जाने की
मन तरसता है तुम्हारा प्यार पाने को
तब उस क्षण मे
तुम ही नहीं बल्कि सभी के द्वारा
ठुकरा दी जाती हूँ
अछूत के समान
स्व केन्द्रित बना दी जाती हूँ
यहाँ तक की
तुम भी मेरे पास नहीं आते हो
तब मैं टूट सी जाती हूँ
बस उस पल मरने की चाह किया करती हूँ ।
फिर अचानक
अगले ही रोज तुम्हारा प्यार
मुझे फिर जीवित कर देता है
अगले माह तक
जीने के लिए
मैं
भूल कर वेदना के उन पलों को
सिमट जाती हूँ
तुम्हारी बाहों के घेरे मे
पाने को तुम्हारा प्यार
अमिट प्यार.।

डॉ अ कीर्तिवर्धन



No comments:

Post a Comment