ललित गर्ग का आलेख - विकलांगों के नाम समर्पित एक विलक्षण व्यक्तित्व : देवेन्द्र राज मेहता
(श्री देवेन्द्र राज मेहता)
विकास ऊध्वारोहण की प्रक्रिया है। बीज उगता है तब बरगद बन विश्राम लेता है। दीये की बाती जलती है तब सबको उजाले बांटती है। समन्दर का पानी भाप बन ऊंचा उठता है तब बादल बन जमीं को तृप्त करने बरसता है। श्री देवेन्द्र राज मेहता का ऊध्वारोहण भी विकास की ऐसी ही प्रक्रिया से गुजरता है। उनका सम्पूर्ण जीवन विकलांगों के नाम समर्पित है, जयपुर फुट एवं मेहता एक दूसरे के पर्याय हैं। भगवान महावीर विकलांग सहायता समिति के संस्थापक अध्यक्ष के रूप में वे विकलांगों के जीवन में रोशनी बनकर प्रस्तुत हुए हैं। इस समिति की हर गतिविधि, योजना एवं कार्यक्रम मानवीय संवेदनाओं की प्रयोगशाला में विभिन्न प्रशिक्षणों एवं प्रयोगों से गुजरकर विशिष्टता का वरन करती है, विकास के उच्च शिखरों पर आरूढ़ होती है और अपने पुरुषार्थ, परोपकार एवं सेवा-भावना से समाज एवं राष्ट्र के विकलांगों को ही नहीं बल्कि जन-जन को अभिप्रेरित करती है।
वॉरेन बफेट ने कहा है कि पैसा, प्रसिद्धि और शक्ति हासिल करने से कई गुणा कठिन है अपनी अच्छाइयों को बनाए रखना। अच्छी बात यह है कि अच्छाई हासिल करना मुश्किल भले हो, लेकिन यह किसी अर्हता की मांग नहीं करती। श्री मेहता ने प्रबल जिजीविषा एवं मानवीयता से सराबोर होकर अच्छाई का जो मुकाम हासिल किया है, वह एक विलक्षण उदाहरण है। उनकी विरलता एवं विलक्षणता के और भी आयाम है, उन्होंने राष्ट्रीय एकता, साम्प्रदायिक सद्भाव, अहिंसा-शांति और भाईचारा बढ़ाने की दिशा में काफी काम किया है। उनके इसी समर्पण भाव, सामाजिकता एवं परोपकार को देखते हुए ही उन्हें हाल ही में राजीव गांधी सद्भावना पुरस्कार दिया गया। यूं तो मेहता के कार्यों को देखते हुए वर्ष 2008 में उन्हें पद्मभूषण से भी सम्मानित किया गया था। महावीर विकलांग समिति द्वारा उपलब्ध कराया गया कृत्रिम अंग जयपुर फुट के नाम से प्रसिद्ध है। जयपुर फुट पहनकर विकलांग व्यक्ति पूरी तरह से सामान्य जीवन व्यतीत करता है- वह साइकिल चलाने के साथ वृक्षों पर भी काफी आराम से चढ़ सकता है। पहाड़ों की चढ़ाई हो या उबड़-खाबड़ रास्ते- विकलांगों को एक आम-आदमी की तरह जीने का अहसास कराने वाले श्री मेहता की सेवाएं उल्लेखनीय एवं अनुकरणीय हैं। मेहता विकलांगों में आत्मविश्वास का संचार कर उन्हें जिंदगी के पथ पर चलने को प्रेरित करते हैं।
महावीर विकलांग समिति द्वारा विकलांगों को कृत्रिम अंग निःशुल्क दिये जाते हैं। करीब 12 लाख से भी ज्यादा देश-विदेश के लोग अब तक इससे लाभान्वित हुए हैं। गतदिनों मुझे आसीन्द (राजस्थान) में लगाये गये विकलांग सहायता शिविर में मेहता की कार्यप्रणाली एवं विकलांग सहायता की नियोजित प्रकिया से रू-ब-रू होने का अवसर मिला। छोटे-से गांव में किस तरह डाक्टरों की टीम एवं विकलांग सहायता के उपकरण पहुंचे एवं विकलांग लोग उनसे लाभान्वित हुए देखकर आश्चर्यमिश्रित खुशी हुई। महावीर विकलांग समिति द्वारा जहां अपेक्षित हो मरीजों को तुरंत सेवा उपलब्ध कराई जाती है। जयपुर में महावीर विकलांग समिति के अस्पताल में किसी भी समय मरीज भर्ती हो सकते हैं। मेहता ने इस संस्था को पूरी तरह से गैर राजनीतिक बनाये रखा है। मेहता ने समाज-सेवा को विज्ञान से जोड़ते हुए स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय से महावीर विकलांग समिति को जोड़ा। इसके परिणामस्वरूप न्यू नी जॉइंट का विकास हुआ जो ‘जयपुर नी' के नाम से प्रसिद्ध हुआ। टाइम पत्रिका ने भी वर्ष 2009 में इसे श्रेष्ठ 50 आविष्कारों में स्थान दिया। महावीर विकलांग समिति एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था है। इसके शिविर लैटिन अमेरिका, अफ्रीका आदि बड़े राष्ट्रों सहित पूरे विश्व के 26 देशों में लगाये जाते हैं। हाउ गुड पीपल मेक ऑफ च्वॉइसेस के लेखक रुशवर्थ कीडर कहते हैं कि इच्छा ही सबसे बड़ी योग्यता है। इतिहास में माइकल एंजलो, वॉन गॉग, महात्मा गांधी जैसे कई चरित्र हैं, जो अच्छे भी थे और सफल भी, साथ ही साथ परोपकारी भी। मशहूर लेखक और वक्ता स्कॉट बेकर्न कहते हैं कि ऐसा चरित्र बनिए, तो सोने पर सुहागा अन्यथा बस अच्छे इंसान बनिए। इससे आप ही नहीं, कायनात सुंदर हो जाएगी। लाखों लोगों की तरह मेहता भी इस सवाल को लेकर उलझन में रहे हो कि अच्छाई और सफलता का रिश्ता क्या है? दोनों में विरोधाभास हो, तो किसे महत्व देना चाहिए? मेहता ने अपने कार्यों एवं जीवन-दिशाओं से न केवल अपने अच्छे इंसान होने का उदाहरण प्रस्तुत किया है बल्कि सृष्टि को सुन्दरतम बनाने में भी योगदान दिया है।
मेहता के जीवन पर भगवान महावीर के जीवन और दर्शन का विशिष्ट प्रभाव है, वे जीवदया एवं पशु रक्षा कार्यकर्ता के रूप में भी जाने जाते हैं। पशु रक्षा के लिए भी उन्होंने कई काम किये हैं। कई पशुओं के घरों का निर्माण में सहयेाग किया है। इसके अलावा पशुओं की सहायता से जुड़ी कई किताबों का भी प्रकाशन किया है। स्थान-स्थान पर गौशालाओं के निर्माण एवं संचालन में भी वे सहयोगी रहे हैं।
मेहता का जन्म राजस्थान के जोधपुर जिले में 25 जून, 1937 को हुआ। उन्होंने राजस्थान विश्वविद्यालय से आट्र्स और लॉ में स्नातक की उपाधि ली है। इसके अलावा ब्रिटेन के रॉयल इंस्टीटयूट से लोक प्रशासन की भी पढ़ाई की है। मेहता ने अमेरिका के बोस्टन स्थित अल्फ्रेड सोलन स्कूल ऑफ मैनेजमेंट एमआईटी में भी पढ़ाई की है। वे इसके बोर्ड के निदेशकों में भी शामिल हैं। अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद मेहता 1961 में भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए। उन्होंने केन्द्र सरकार एवं राजस्थान सरकार के सर्वोच्च पदों पर रहकर जो कुशल प्रशासन के मानक गढे़, उससे सुदीर्घ काल तक आने वाली पीढ़ियां प्रेरणा लेती रहेंगी। मेहता सेबी के अध्यक्ष भी रहे। भारत में आर्थिक सुधार की प्रक्रिया से भी मेहता जुड़े रहे। उन्होंने रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर का भी पदभार संभाला है। राजस्थान में अपने प्रशासनिक काल के दौरान मेहता ने गरीबों के लिए बने विशेष कार्यक्रमों में भी प्रमुख भूमिका निभाई। वे मुख्यमंत्री के सचिव भी रहे। कई प्रशासनिक पदों का निर्वहन करते हुए भी वे सामाजिक कार्यों में लगे रहे। सबसे बड़ी बात सफलता के उच्च शिखरों पर आरुढ़ होने पर भी उनमें सादगी, सरलता एवं निर्मलता ही देखने को मिलती है। वर्ष 1975 में जयपुर में उन्होंने महावीर विकलांग समिति की स्थापना की और इस समय मेहता पूरी तरह इससे जुड़े हुए हैं। मेहता के नेतृत्व में ही महावीर विकलांग समिति पूरे विश्व में विकलांगों की एक महत्वपूर्ण संस्था के रूप में उभरा है।
अनेकानेक विशेषताओं में मेहता की एक प्रमुख विशेषता यह है कि वे सदा हंसमुख रहते हैं। वे अपने गहन अनुभव एवं व्यावहारिकता के कारण छोटी-छोटी घटना को गहराई प्रदत्त कर देते हैं। अपने आस-पास के वातावरण को ही इस विलक्षणता से अभिप्रेरित करते हैं। उनकी सहजता और सरलता में गोता लगाने से ज्ञात होता है कि वे गहरे मानवीय सरोकार से ओतप्रोत एक अल्हड़ व्यक्तित्व हैं। संसार और अपने परिवेश को देखने की उन्होंने बड़ी वेधक मानक दृष्टि विकसित कर ली है। वह जितनी संलग्न उतनी ही निस्संग और निर्वैयक्तिक है। यही मानक दृष्टि उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व को समझने की कुंजी है।
प्रेषकः
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