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Wednesday, July 17, 2013

amiri ka khel

अमीरी का खेल ....

गरीबी में सामूहिक जीवन जिया करता था ,
अमीरी ने मुझे तन्हा बना दिया ।

सिमट गया हूँ अपने ही आवरण में ,
दौलत ने अपनों से जुदा करा दिया ।

बढ़ गयी दूरियाँ सिमटने के कगार तक ,
निन्यानवें के फेर ने कैसा उलझा दिया ?

माँ-बाप,भाई-बहन ,बच्चों से रिश्ते बदल गए ,
बस पैसे का उनसे  मेरा रिश्ता बना दिया ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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