विकलांगों के लिये तकनीकी साधन
एम.आई.हबीबुल्ला
एम.आई.हबीबुल्ला
विकलांगों के पुनर्वास के क्षेत्र में हुए जबर्दस्त तकनीकी विकास ने अनेकों ऐसे लोगों को चलना सिखा दिया है, जिनके पांव जन्म से ही नहीं थे, या फिर किसी कारणवश उन्हें काटना पड़ा था। आधुनिक तकनीकी अंगों की सहायता से अनेकों ऐसे लोग भी अपने मित्रों से हाथ मिला सके हैं, जिनके हाथ थे ही नहीं। वे लोग मोटरचालित अथवा गैर मोटर चालित तिपहिया साइकिलें, यहां तक विशेष उपकरणों से सज्जित कारें भी, चला रहे हैं। इस प्रकार की कारों के नौ रूपों का निमार्ण भारत में ही मारूति उद्योग लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है। इस क्षेत्र में तकनीकी प्रगति का एक अन्य उदाहरण है, अस्थि रोगियों के उपकरणों में इस्पात की जगह प्लास्टिक का इस्तेमाल। इस्पात के इस्तेमाल से जोड़ों को ज्यादा आसानी से मोड़ा या घुमाया जा सकता है।
लिखने के लिये कृत्रिम हाथ
दृष्टि बाधितों द्वारा इस्तेमाल की जा रही ब्रेल की शार्टहैंड मशीनों, जिनका पहले आयात होता था का निर्माण अब कानुपर स्थित कृत्रिम अंग निर्माण निगम (आरटीफीशियल लिम्बस मैन्यूफैक्चरिंग कार्पोरेशन-आलिम्को) द्वारा भारत में ही किया जाता है। आलिम्को द्वारा जो चीजें (कृत्रिम अंग) बनायी जा रही है, उसमें उस कृत्रिम हाथ का उल्लेख आवश्यक है जो कलम पकड़कर लिख सकता है, यहां तक कि हल्की वजन की चीजें भी उठा सकता है। इनका अभिकल्पन और विकास देहरादून स्थित राष्ट्रीय दृष्टि-बाधित संस्थान (नेशनल इंस्टीटयूट फार दि विजुअली हैंडीकैप्ड (एनआईवीएच) ने किया है। इन लोगों ने दृष्टिहीन बच्चों के लिये शतरंज, ताश, डार्टबोर्ड (निशाना साधने के लिए दीवार पर टंगे बोर्ड पर छोटे-छोटे तीरों को फेंकने का खेल) और पहेलियों वाले अनेक खेलों की डिजाइन तैयार कर उनका विकास किया है। एनअईवीएच ने दृष्टिहीन स्टेनोग्राफरों के लिये 1981 में हिंदी कोड का विकास कर उनके लिये संभावनाओं के नये द्वारा खोल दिये हैं।
जन्मजात बहरेपन, बीमारी अथवा दवाओं के विषैलेपन के कारण श्रवणशक्ति खो चुके लोग अब भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा विकसित एक इलेक्ट्रानिक यंत्र के जरिये ध्वनि का स्पन्दन महसूस कर सकते हैं। इस यंत्र में विशेष रूप से तैयार इलेक्ट्रानिक सकिर्ट लगा होता है जो एक विशेष प्रकार के स्पन्दन को जन्म देता है। गत वर्ष एनआईवीएच ने कम्प्यूटर आधारित एक विशेष यंत्र का विकास किया था जो दृष्टिहीन आपरेटरों को हस्तचालित विशाल टेलीफोन एक्सचेंजो को चलाने में मदद करता है। इस यंत्र का मैदानी परीक्षण, देहरादून स्थित सार्वजनिक क्षेत्र के केन्द्रीय उपक्रम पाईराइट्स, फास्फेट्स एंड केमिकल्स (पीपीसीएल) द्वारा किया जा चुका है। एनआईवीएच इन दिनों ब्रेल लिपि के एक गणितीय संहिता (कोड) और शिक्षण यंत्र के विकास में जुटा है, जिसकी मदद से दृष्टिहीन लोग उच्चतर कक्षाओं में गणित का अध्ययन कर सकेंगे।
सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने विकलांगों के चारों संस्थानों को कम्प्यूटर सुविधायें प्रदान की हैं। देहरादून (दृष्टिहीनों के लिये), कोलकाता (अस्थिरोग से ग्रस्त विकलांगों के लिये), मुम्बई (बधिरों हेतु) और सिकन्दराबाद में मानसिक रूप से बाधित लोगों के लिये कम्प्यूटरों को नई दिल्ली के नेशनल इन्फोर्मेशन एंड डाक्यूमेंटेशन सेन्टर स्थित मुख्य कम्प्यूटर से जोड़ा गया है।
अतीत में, अपंग लोग ठीक से चल नहीं सकते थे और थोड़ी दूर जाने के लिये छड़ी का इस्तेमाल करते थे, परन्तु अब तकनीकी विकास के चलते अपंग व्यक्ति कृत्रिम अंगों के सहारे सामान्य लोगों की तरह चल सकते हैं। वे मोटर व गैर-मोटर चालित तिपहिया साइकिलें चला रहे हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मारूति उद्योग लिमिटेड, व्यक्ति की विकलांगता के अनुसार हाथ अथवा पैर से चलायी जा सकने वाली कारें बना रहे हैं।
अब, भारत में दृष्टिहीन स्टेनोग्राफरों की बेहतरी के लिये ब्रेल लिपि की शार्टहैंड मशीन बनायी जा रही हैं। इन मशीनों का निर्माण कानपुर का आर्टिफिशियल लिम्ब््स मैन्यूफैक्चरिंग कार्पोरेशन (आलिम्को) कर रहा है जबकि इसकी डिजाइन और विकास का काम नेशनल इस्टीटयूट फार दि विजुअली हैंडीकैप्ड (एनआईवीएच), देहरादून ने किया है।
सशक्तिकरण
विकलांग व्यक्तियों के लिये राष्ट्रीय नीति की घोषणा कर दी गयी है, जो विकलांगों के शारीरिक पुनर्वास, शिक्षा, आर्थिक पुनर्वास और उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। बाधित व्यक्तियों (समान अवसर, अधिकारों का संरक्षण और पूर्ण भागीदारी) अधिनियम, 1995 के साथ मिलकर (विकलांग) नीति विकलांगता के बचाव और समय रहते उसके पहचान के समग्र पहलू को देखेगी। इसके अलावा विकलांगता के अन्य पहलुओं जैसे, शुरूआती स्तर पर ही हस्तक्षेप,शिक्षा, रोजगार और निर्बाध उन्मुक्त वातावरण का विकास से जुड़े विषयों पर भी ध्यान केन्द्रित करेगी। इसमें, व्यवसायिक प्रशिक्षण, सरकारी क्षेत्र में रोजगार आरक्षण, गैर-भेदभाव, अनुसंधान और जनशक्ति विकास पर भी ध्यान दिया जायेगा। इस नीति में विकलांग महिलाओं और बच्चों की विशिष्ट समस्याओं का भी ख्याल रख गया है।
हेल्पलाइन
मंत्रालय ने मुम्बई और दिल्ली में विकलांगों के लिये टेलीफोन हेल्प लाइनों की शुरूआत की है, जिसे विकलांगों के पुनर्वास की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है। मुम्बई क्षेत्र के अंतर्गत महाराष्ट्र और गोवा राज्य शामिल है। इन हेल्पलाइनों पर विकलांगों की भलाई के लिये जागरूकता और सन्दर्भ सेवाओं, अभिभावकों, शुभचिंतकों, पुनर्वास विशेषज्ञों और निर्णयकारी व्यक्तियों के बारे में वांछित जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
आय सीमा में वृध्दि
यंत्रों, उपकरणों और अन्य आवश्यक वस्तुओं के क्रय और फिटिंग के लिये विकलांगों की पात्रता के लिये विकलांग व्यक्तियों की सहायता योजना में महत्वपूर्ण संशोधन किये गये हैं। शत-प्रतिशत रियायत के लिये आय सीमा 5हजार रुपये से बढाक़र साढे छ: हजार प्रतिमाह कर दी गयी है, जबकि 50 प्रतिशत सहायता के लिये आय सीमा 8 हजार से बढाक़र 10 हजार रूपये प्रतिमाह कर दी गई है। इसका उद्देश्य अधिक से अधिक लोगों को लाभ पहुंचाना है। इसके अलावा इस योजना के तहत लोकोमोटर विकलांगता वाले व्यक्तियों के लिये मोटर चालित तिपहिया साइकिलें और कम्प्यूटर उपयोग करने वाले दृष्टि बाधित व्यक्तियों के लिये सापऊटवेयर को भी शामिल कर लिया गया है। योजना के अन्तर्गत एक अरब 22 करोड़ 19 लाख रुपये की अनुदान राशि जारी की जा चुकी है, जिससे 5 लाख 3 हजार तीस लोगों (विकलांगों) को लाभ पहुंचा है।
उत्तर पूर्व और जम्मू-कश्मीर
विकलांग व्यक्तियों के शारीरिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पुनर्वास, खासकर चलने-फिरने से मजबूर लोगों के लिए करीब चार लाख विकलांगों को सहायक यंत्रउपकरण आदि दिये गए हैं। इनमें उत्तर पूर्वी राज्यों और जम्मू और कश्मीर राज्य के श्रीनगर तथा लेह के लोग भी शामिल हैं। वहां पर इस तरह के वितरण शिविर पहली बार आयोजित किये गए थे। (पसूका)
No comments:
Post a Comment