मौत मेरी बाँदी है , जिंदगी शरीके हयात ,
मगर आज के दौर में बाँदी अहम् हो गई है ।
जब से आया है दौर यहाँ बेहयाई का ,
मौत -जिंदगी से ज्यादा अहम् हो गई है ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
मगर आज के दौर में बाँदी अहम् हो गई है ।
जब से आया है दौर यहाँ बेहयाई का ,
मौत -जिंदगी से ज्यादा अहम् हो गई है ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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