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Sunday, July 28, 2013

viklangata hone ke kaaran tathaa samadhan

क्रमांक -94/13                                                                              दिनांक  28/ 07/ 2013


          विकलांगता होने के कारण तथा समाधान
सन 1981 से प्रतिवर्ष 3 दिसंबर को अन्तर्राष्ट्रीय विकलांग दिवस मनाया जाता है |  अगर मैं कहूँ कि इस दिन को   “ विकलांगता उत्सव “ कहा जाए तो निश्चित ही अनेक लोगों को इस पर आपत्ति होगी , मगर यही सच है |  ऐसा सच जो विकलांगों की बैशाखियों के सहारे धीरे-धीरे चलकर अधिकारियों के लिए उत्सव बन जाता है  | विकलांग मेला, विकलांग गोष्ठी ,तथा विकलांगता प्रदर्शन , इस सबमे विकलांग कहाँ है ? किसी मंच पर नहीं , गोष्ठी में नहीं ,किसी योजना के क्रियान्वयन में भी नहीं ,तो फिर कहाँ है विकलांग ? अरे वहीँ तो था -सामने बैठी भीड़ में , किसी दूकान में काउंटर के पीछे , या फिर विकलांगों की दौड़ में , जिसमे एक विकलांग दुसरे विकलांग से जीतेगा और हम ताली बजायेंगे ,  कुछ सम्मान देंगे , प्रमाण पत्र देंगे , कुछ घोषणाएँ करेंगे जो शायद जल्द पूरी भी नहीं होंगी , परिणामत: कुछ भ्रष्ट कर्मचारियों और अधिकारियों को कमाई का एक और रास्ता |   जी हाँ यही सच है विकलांगता दिवस का |

विकलांग दिवस का प्रमुख लक्ष्य या उद्देश्य --
१ विकलांग व्यक्तियों के लिए बेहतर समझ कायम करना
२ उनके अधिकारों का संरक्षण
३ उन्हें सामजिक , राजनैतिक , आर्थिक व सांस्कृतिक लाभ दिलाना

भारत सरकार ने भी ३० मार्च २००७ को संयुक्त राष्ट्र के साथ इस समझौते पर हस्ताक्षर कर विकलांगों के अधिकारों की रक्षा और समान अवसर के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताई  | यहाँ हम इस विषय पर बात नहीं करना चाहते हैं कि यह प्रतिबद्धता किस हद तक निभाई गई अथवा नहीं , अपितु मेरी चर्चा का विषय यह है कि मैं विकलांगों के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जताऊं अथवा उन कारणों पर गौर करूँ जिनके कारण विकलांगता का जन्म हो रहा है तथा उसके निदान पर चर्चा करूँ | अगर मेरी चर्चा विकलांगता के कारणों पर है तो अंतर्राष्ट्रीय विकलांगता दिवस का उद्देश्य तथा प्रयोजन सीमित ही रह जाता है |

आज हमारे सम्मुख मुद्दा यह नहीं है कि विकलांगता क्या है ? कितने प्रतिशत है ?  हम विकलांगों को क्या सुविधाएं दे रहे हैं अथवा दे  सकते हैं ? , बल्कि मुद्दा यह है कि विकलांगता होने के क्या कारण हैं और उन कारणों से निपटने के क्या उपाय किये जाएँ ? अभी तक किये जा रहे उपायों की समीक्षा कैसे की जाए |

विकलांगता के अनेक कारणों में से कुछ को हमने चिन्हित करने का प्रयास किया है , जिसमे ---

१ जन्म से होने वाली विकलांगता - किन्ही कारणों से गर्भ में अंगों का पूर्ण विकसित ना होना ,कुछ जैनिक कारणों से अथवा अनुवांशिक कारणों से होने वाली विकलांगता , जो सभी सुख , सुविधा, जानकारी , साधनों की उपलब्धता , उचित चिकित्सा ,पोषण के बावजूद भी होती है , प्रमुख है | यधपि इस तरह की विकलांगता का प्रतिशत बहुत कम रहता है |

२ विपरीत परिस्थितियों के कारण होने वाली जन्मजात विकलांगता - यह भी ऊपर लिखी विकलांगता का ही रूप है मगर इसमें उन विकलांगों को रखा जा सकता है | जिनके माता पिता के आर्थिक हालत जटिलतम है, कुपोषण के शिकार हैं , नशे का प्रयोग किया जाता है , गर्भवती महिलाओं द्वारा प्रदूषित पानी  का प्रयोग , गर्भावस्था में दवाओं का अभाव , उचित चिकित्सा सुविधा का ना मिलना , असुरक्षित यौन संबंधों के चलते होने वाली बीमारियाँ तथा गर्भ पर उसका प्रभाव आदि | इस प्रकार की विकलांगता को रोकने के प्रयास किये जा सकते हैं |

३ नजदीकी रिश्तों में की गई शादी , सामान रक्त ग्रुप , गोत्र समानता में किये गए विवाह के उपरान्त होने वाली संतानों में भी विकलांगता का प्रतिशत अधिक पाया जाता है |  विवाह और संतानोत्पत्ति मात्र स्त्री और पुरुष के संसर्ग को नहीं कहा जाता अपितु इसका वैज्ञानिक आधार भी है | भारतीय ऋषियों,  मनीषियों तथा चिंतकों ने गहन विश्लेषण के पश्चात वैदिक काल से ही इस तथ्य को समझ लिया था तथा समान गोत्र , नजदीकी रिश्तेदारी ,तथा सामान रक्त ग्रुप में शादी को प्रतिबंधित कर रखा था  | जिसकी पुष्टि वर्तमान विज्ञान भी करता है | हमारे शास्त्रों में विशुद्ध रक्त संरक्षण की प्रणाली को “ स्व वर्ण असगोत्र विवाह संस्था “ कहा गया है |  नजदीकी रिश्तों में विवाह अनुवांशिक रोगों को जन्म देते हैं , जिनका उपचार वर्तमान चिकित्सा व्यवस्था के लिए अब भी दुष्कर है , इस प्रकार के रोगों का प्रभाव मुस्लिम समाज में तुलनात्मक अधिक पाया जाता है |

४ दुर्घटना जनित विकलांगता --तेज रफ़्तार जिंदगी , रोमांचक जिंदगी , आतंकवाद , युद्ध, हिंसा , प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली विकलांगता की चर्चा यहाँ की जा सकती है |   इसमें होने वाली विकलांगता पर कुछ हद तक नियंत्रण किया जा सकता है | सड़क पर गति पर नियंत्रण तथा जागरूकता इसमें सहायक हो सकते हैं | आतंकवाद , नक्सलवाद , माओवाद या अन्य समस्याओं पर सरकार द्वारा गंभीर चिंतन तथा समस्या का समाधान इस प्रकार की विकलांगता में कमी लाने में सहायक हो सकता है | प्राकृतिक आपदाओं पर हमारा नियंत्रण नहीं है मगर आपदा प्रबंधन को सुनिश्चित करके  इस प्रकार होने वाली विकलांगता पर भी कुछ हद तक रोक लगाई जा सकती है |

५ परिस्थितिजन्य विकलांगता --किसी भी देश की सरकार का यह पहला दायित्व होता है कि वह अपने नागरिकों को शुद्ध जल, वायु ,चिकित्सा ,साफ़ वातावरण ,शिक्षा व भोजन की उचित व्यस्था उपलब्द्ध कराये |
विडम्बना यह है कि आज़ादी के ६ ६ साल बिताने के पश्चात भी हम अपने नागरिकों को मिलने वाली मूल भूत सुविधाएं भी नहीं दे पा रहे हैं |  इतना ही नहीं कुछ सुविधा संपन्न लोगों द्वारा निज स्वार्थों के कारण नागरिकों को मिलने वाली प्राकृतिक सुविधाओं का भी दोहन किया जा रहा है  |
अ ---कुपोषण देश की विकराल समस्या है , अभी तक इससे निपटने के कोई गंभीर प्रयास भी नहीं किये गए हैं |   देश के गोदामों में अनाज सड रहा है , उच्चतम न्यायालय भी गुहार लगा रहा है , मगर आज भी करोड़ों बच्चें दो समय की रोटी को तरस रहे हैं |  कुपोषण सभी प्रकार की विकलांगता को जन्म देता है | बदलती जीवन शैली , फास्ट फ़ूड , मोटापा , शारीरिक श्रम का अभाव समृद्ध परिवारों में भी विकलांगता का कारण बन रहा है |  मंद बुद्धि , सेरेबाल पाल्सी से पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ रही है

ब --फ्लोरोसिस ,आर्गेनिक तथा फ्लोराइड का कहर अच्छे भले आदमी को विकलांग बना रहा है |  विकलांग दर में बढती संख्या का सबसे बड़ा कारण इन रासायनिक तत्वों का प्रयोग ही है | इन पर नियंत्रण के सभी सरकारी दावे हवा हवाई हैं \ मगर यह सच है कि  इन रसायनों पर नियंत्रण करने वाली संस्थाओं के कर्मचारियों की आर्थिक विकलांगता पूरी तरह ख़त्म हो चुकी है | बात चाहे उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले की हो जहां पडवा , कोद्दारी,रोहनिया डामर ,माधुरी , कुसुन्हा , रूहानिया , डामर ,राजो , बिछियारी समेत अनेक गाँव के लोग विकलांगता के शिकार होकर अपनी मौत का इंतज़ार कर रहे हैं ,  बिहार में भागलपुर जिले में कोलाखुर्द हो अथवा मध्य प्रदेश का बडवानी आदिवासी क्षेत्र की हो अथवा उत्तर प्रदेश में नया विकसित हो रहा मुज़फ्फरनगर जिले का मखियाली क्षेत्र हो , सभी जगह विकलांगता की नई  पौध तैयार की जा रही है | यहाँ विकलांगता के आंकड़े चौकाने वाले हैं ---
मध्य प्रदेश --बडवानी --मध्य प्रदेश में 2001 की गणना के अनुसार कुल विकलांग -1477708 थे जिनमे से  1108281 ग्रामीण थे , यानी कुल विकलांगता का 75 % ग्रामीण विकलांग पाए गए  |
अकेले बडवानी जिले में ही कुल विकलांग 17782  थे |
कुल विकलांगों का 80 % गरीबी की रेखा से नीचे हैं , भले ही नई नीति के अनुसार सरकार कुछ को गरीबी रेखा से ऊपर कर दे ।
प्रदेश में 35 % विकलांगों के पास कोई रोजगार नहीं है अथवा वे रोजगार करने लायक ही नहीं हैं |
कुल 60 % विकलांग निरक्षर हैं |

उत्तर प्रदेश के सोनभद्र की स्थिति का अध्यन करने वाले श्री आवेश तिवारी , पीपुल साइंस इंस्टिटयूट ,देहरादून आदि ने लगभग 147  गाँव में फ्लोराइड के असर का परिक्षण किया ।  3588 बच्चों में से 2219 बच्चों में फ्लोराइड की अधिकता पायी गई ।  गाँव के गाँव विकलांग होते जा रहे हैं ।  गर्भस्थ शिशु से लेकर बड़े बूढ़े मजबूर हैं | बिहार-भागलपुर-कोलाखुर्द में पानी मर अत्याधिक फ्लोराइड, आर्सनिक ने हर किसी को विकलांग बना दिया है |  ऐसे एक दो नहीं अनेकों उदाहरण हैं ।
ऐसा नहीं कि कुछ जगह सरकारी उपाय नहीं किये गए हों, मगर वह सरकारी उपाय भी विकलांग बनकर रह गए हैं ।  सोनभद्र से कुसुम्हा गावँ की तरफ गुजरते हुए जल निगम द्वारा हैण्ड पम्प लगाया गया है , इस हैण्ड पम्प में फ्लोराइड प्रदूषित जल को साफ़ करने के लिए फ़िल्टर लगा है ।  लेकिन पिछले दो वर्ष से फ़िल्टर में कैमिकल नहीं डाला गया।  पडवा कोदारी में जल निगम द्वारा ही स्वच्छ जल की आपूर्ति हेतु मोटर तो लगवा दी गई मगर जेनरेटर में डीजल न होने के कारण पिछले तीन वर्षों से पानी की आपूर्ति ठप्प है । ऊपर से विडम्बना यह कि सरकारी डाक्टरों का रवैया अत्याधिक पीडादायक है ।  शहरों और कस्बों में बैठकर ही कागजों में दवा का वितरण जारी है ।
समाजसेवी डॉ प्रियाल की टीम ने इन गाँव का दौरा किया तो स्थिति की भयावहता तथा सरकारी उपेक्षा देखकर उनके आंसू निकल पड़े ।   डॉ प्रियाल कहती हैं कि यहाँ सबसे पहली आवश्यकता तो पुनर्वास की है और इसके अलावा इस स्थिति से बचने का कोई उपाय भी नहीं है ।
डॉ जेन्नी शबनम स्वयं अपने मित्रों ,प्रधानाध्यापक राकेश सिंह, श्रीमती अलका सिंह , तथा भागलपुर के फिजियो के साथ भागलपुर से पंद्रह किलोमीटर दूर जगदीशपुर प्रखंड में कोलाखुर्द गाँव गाँव में गई ।  इस गाँव का पानी आर्सेनिक ,फ्लोराइड युक्त पाया गया है ।  दो हज़ार की आबादी वाले गाँव में 100  से अधिक लोग पूर्ण विकलांग हो चुके हैं, छोटे छोटे बच्चों के पाँव टेढ़े होने लगे हैं ।  यह क्षेत्र पिछले तीस  वर्षों से फ्लोराइड तथा आर्सेनिक की समस्या से जूझ रहा है ।   लोक स्वस्थ्य अभियंत्रण द्वारा स्वच्छ पानी के लिए मिनी प्लांट लगाया गया मगर सरकार द्वारा नियुक्त ठेकेदार द्वारा महँगी दवा का प्रयोग न करने के कारण यह प्लांट खुद विकलांग हो चुका है और ठेकेदार इस प्लांट की बैशाखियों की सहायता से मालामाल ।

जिन चपाकलो (हैण्ड पम्प) में आर्सेनिक या फ्लोराइड ज्यादा है उन पर लाल निशान लगा दिया गया है यानी पानी पीने  योग्य नहीं है मगर साफ़ पानी का दूसरा कोई विकल्प न होने के कारण ग्रामीण इसी पानी को पीने  को विवश हैं ।  प्रश्न यह है कि क्यों नहीं इन चपाकलों को ख़त्म कर दिया जाता ?
इसका जवाब किसी के पास नहीं है ।
इसी गाँव के पास नारायणपुर कोलाखुर्द में एक कुये में साफ़ पानी उपलब्द्ध है ।  सरकार ने वहां से पाईप लाइन के द्वारा पानी गाँव तक लाने का प्रस्ताव रखा जो आज तक फाइलों में विकलांग होकर दबा पडा है और ना जाने कितने लोगो के विकलांग होने का इंतज़ार कर रहा है ।
सूर्यकांत देवांगन ने छत्तीसगढ़ के जिला सुरजपुर में रामानुजनगर विकास खंड के गाँव हनुमानगढ़ की जांच की।  यहाँ भी पानी में फ्लोराइड ,सल्फर ,फास्फोरस,व अन्य कैमिकल तत्वों की मात्र अधिकता में पायी गई है ।
इस गाँव की आधी आबादी विकलांगता का दंश झेल रही है ।  सरकार को प्राप्त जांच रिपोर्ट के बावजूद यहाँ का स्वस्थ्य विभाग तथा लोक स्वस्थ्य यांत्रिकी विभाग इस समस्या के प्रति उदासीन है ।
यह तो मात्र कुछ उदहारण हैं जिनसे स्थिति की भयावहता का अनुमान लगता है ।  

यूनिसेफ की सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार भारत के बीस राज्यों में रहने वाले लाखों लोग फ्लोराइड युक्त पानी का सेवन कर रहे हैं ।  भारत सरकार के अनुसार भी उन्नीस राज्यों के दो  सौ  तीस जिले इस समस्या से प्रभावित हैं |  देखना यह है की सरकार तथा सामजिक संगठन कब स्थिति से निपटने के  गंभीर प्रयास शुरू करेंगे ? और तब तक कितने और अबोध , निर्दोष लोग विकलांगता के शिकार हो चुके होंगे |

अंत में यही कहना चाहूँगा कि विकलांगों का पुनर्वास एक समस्या है , सरकार को अपनी  पंच वर्षीय योजनाओं में इसे प्राथमिकता देनी चाहिए | साथ ही साथ उससे भी बड़ी चुनौती है बढती विकलांगता को रोकने की जिसके लिए शुद्ध पानी की सुविधा तथा कुपोषण से निपटने के उपायों पर गंभीरता से काम करने की जरुरत है | इसके लिए आगामी योजनाओं में न केवल आर्थिक ,तकनिकी विकल्पों पर चर्चा हो अपितु सम्बंधित अधिकारीयों की जिम्मेदारी, दायित्व ,सहभागिता भी सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाये जाएँ , लापरवाह कर्मचारियों के लिए कुछ न कुछ दंड के भी प्रावधान हों | शायद तब ही हम विकलांगों के हित में उचित कार्यवाही ,योजनाओं का क्रियान्वन करने में सक्षम हो सकेंगे |


                                                                                    डॉ अ  कीर्तिवर्धन
                                                                                    “ विद्यालक्ष्मी निकेतन “
                                                                                     53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव
                                                                                     मुज़फ्फरनगर -251001 (उ. प्र.)  









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