मेरा कातिल मेरी निगाहों के , रूबरू ही था ,
मेरी आँखों में उसका अक्स , हुबहू ही था ।
मैंने जब भी चाहा निगाहें चुराना उससे ,
मेरे दिल ने उसे पुकारा ,नजारा खूब ही था ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
मेरी आँखों में उसका अक्स , हुबहू ही था ।
मैंने जब भी चाहा निगाहें चुराना उससे ,
मेरे दिल ने उसे पुकारा ,नजारा खूब ही था ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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