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Thursday, August 8, 2013

nadiyon ko naalaa banaa

नदियों को नाला बना , अब ढूंढ़ रहे हो नीर
दौलत के जो लालची , क्या समझें वो पीर |

नदियाँ जीवन दायिनी , थी सभ्यता का केंद्र ,
बदला भी खुद ही लेंगी , रख थोड़ी सी धीर ।

अभी अभी तो देखा है , प्रकृति का प्रकोप
उतना ही बदला बड़ा , जितना लूटा चीर ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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