दोस्तों,
कभी कभी मुझे लगता है कि हमने अपने चारों और नकारात्मक सा माहौल बना लिया है ज़रा सा कोई काम हमारे अनुसार नहीं हुआ तो हम शुरू हो गए " इस देश में कुछ नहीं हो सकता ", विचार करें कुछ तो अच्छा हो रहा होगा, माना की अन्धेरा है मगर यह भी देखें की प्रकाश की एक किरण अन्धेरें का नाश कर देती है।
तम का पहरा हो कितना भी गहरा, मुझे मेरे पथ से डिगा ना सकेगा,
मैं जलूँगा दीप बन हर राह में, तम का वुजूद एक पल में मिटेगा।
आओ हम सब सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ें .......
रात के बाद, सुबह का उजाला होगा,
तम कितना भी घना, सुबह का निवाला होगा।
कब तलक जालिमों की हुकूमत रही है,
राम -कृष्ण सा कोई आने वाला होगा।
मैं शुक्रगुजार हूँ कमबख्त अंधेरों का, दोस्तों,
एकता का आधार, किसी का अत्याचार ही होगा।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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