नदियों को नाला बना , अब ढूंढ़ रहे हो नीर ,
दौलत के जो लालची , क्या समझें वो पीर ?
नदियाँ जीवन दायिनी ,थी सभ्यता का केंद्र ,
बदला भी खुद ही लेंगी , रख थोड़ी सी धीर ।
अभी अभी तो देखा है , प्रकृति का प्रकोप ,
उतना ही बदला बड़ा , जितना लूटा चीर ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
दौलत के जो लालची , क्या समझें वो पीर ?
नदियाँ जीवन दायिनी ,थी सभ्यता का केंद्र ,
बदला भी खुद ही लेंगी , रख थोड़ी सी धीर ।
अभी अभी तो देखा है , प्रकृति का प्रकोप ,
उतना ही बदला बड़ा , जितना लूटा चीर ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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