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Tuesday, September 24, 2013

dil hai koi kaanch kaa tukadaa nahi

दिल है ये कोई कांच का टुकड़ा नहीं ,
चोट खायी और टूटकर बिखर गया ।
दिल है ,अपने जज्बात को काबू रखा ,
गैरों का दर्द महसूस कर पिंघलता गया ।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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