उन लोगों के नाम एक पैगाम -----
जो खुद को खुदा समझते हैं ,
जो देश के रहनुमा बनते हैं ,
कराते हैं दंगे , सकते हैं रोटियाँ ,
लाशों पर वोट की बिसात रचते हैं । ---------
लिखा था कभी हाथ पे ,सिकंदर ने मुकद्दर ,
हो गया था गुरुर उसको , होने का कलंदर ।
मिट गया था अहम् ,एक फ़क़ीर की बात से ,
खाली हाथ ही गया था , दुनिया से सिकंदर ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
जो खुद को खुदा समझते हैं ,
जो देश के रहनुमा बनते हैं ,
कराते हैं दंगे , सकते हैं रोटियाँ ,
लाशों पर वोट की बिसात रचते हैं । ---------
लिखा था कभी हाथ पे ,सिकंदर ने मुकद्दर ,
हो गया था गुरुर उसको , होने का कलंदर ।
मिट गया था अहम् ,एक फ़क़ीर की बात से ,
खाली हाथ ही गया था , दुनिया से सिकंदर ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
सुन्दर और सामयिक रचना
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