चोर-उच्चके देश चलाते, भ्रष्टाचारी बैठे सत्ता में ,
मानवता दिन रात तड़फती, खामोशी है जनता में।
कातिल और दरिन्दे चलते, सरकारी संरक्षण में,
कुछ गुंडे और मवाली सांसद, सत्ता के आरक्षण में।
आरक्षण अधिकार दिया था, संविधान ने पिछड़ों को,
आज और भी पिछड़ गये हैं, जातिवाद के चक्कर में।
प्रतिभाएं भी पलायन करती, निकम्मे बैठें कुर्सी पर,
भेदभाव अधिकार बताते, नेता अपने अपने भाषण में।
भूख-गरीबी और बेकारी, पहले से ही भारी थी,
महंगाई का अस्त्र चलाया, अर्थशास्त्र सम्मोहन में।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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