आज जूही तू इस घर का मान बन गयी है,
अब तुम्हारी एक नयी पहचान बन गयी है।
कल तक थी तू “जूही की कली”, बाबुल के घर,
बेटी-बहु बनकर, ससुराल का हार बन गयी है।
जन्म के माँ-बाप ने, तुमको पढ़ाया-लिखाया संवारा,
कर्म के मात-पिता के आँगन की, शान बन गयी है।
उस घर में तुमने, सभ्यता- संस्कृति-संस्कार सीखे,
अपने नये घर को महकाना, तेरी आन बन गयी है।
माँ-बाप का आदर करना, और अतिथि सत्कार,
इस घर की सदा से, यह पहचान बन गयी है।
रखना है ध्यान तुमको, इन सभी गुणों का,
अब दोनों घरों का जूही, तू मान बन गयी है।
पति और पत्नी होते, सदा एक दूजे के पूरक,
शास्त्रानुसार अब तू, अर्द्धांगिनी बन गयी है।
संकल्प के संकल्प भी, हो गये अब सारे तुम्हारे,
प्रेरणा बनना जीवन में, तू महान बन गयी है।
जूही की खुश्बू भी फैलेगी, अब सारे जगत में,
सास-ससुर के दिल की, तू जुबान बन गयी है।
दुःख तुम्हारे जीवन में, कभी आने ना पाये,
हमारे दिल की हर धड़कन, दुआ बन गयी है।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
विद्यालक्ष्मी निकेतन
53 -महालक्ष्मी एन्क्लेव,
मुज़फ्फरनगर-251001
8265821800
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