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Monday, November 4, 2013

lekhak ke samaksh chunautiyaan -2

आलोक श्रीवास्तव की  कविता-3

हिंदी का लेखक

कहां है मुर्शिदाबाद ?
कौन आज भी पराजित होता है प्लासी में ?
किस दुख को कह नहीं पा रही हमारी हिंदी इस बरस ?
विद्यापति कैसे बदल गया राजकमल चौधरी में ?
सन ६४ में भी होते थे शोभामंडित आयोजन दिल्ली में
जिसमें आज गदगद शरीक होता साहित्य-समाज;
कहां थे तब मुक्तिबोध ?

कौन रोता है पटना की सड़कों पर
दूर देश में किसकी प्रिया बाट अगोरती ?
क्या करते हैं आज गोरख के साथी कवि-साहित्यकार-पत्रकार ?

कितने तो सवाल हैं
पर सभी सवालों से बड़ा ज्ञानपीठ
बड़े हैं आयोजन, दूतावास बड़े
मध्यमवर्ग के क्रांति-विचारक लेखक के सुख-सौभाग्य बड़े
जो हार रही है गांव-गली-जनपद
वह हिंदी की जनता है
इस जनता से हिंदी के लेखक का
शीष बड़ा, पांव बड़े …
 
 *****
(काव्य संकलन ’यह धरती हमारा ही घर है’  से साभार)

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