मानव जीवन मेँ कुछ पल है
उनका हम आलिँगन कर लेँ
संवादोँ को आधार बनाकर
मानवता जीवन मेँ भर लेँ ।
यह उक्ति आदरणीय युवाओँ का मार्गदर्शक डॉ अ. कीर्तिबर्द्धन जी की लेखनी
से उद्धृत है और अपने लिखे अनुसार आत्मसात पर उतारु भी ।
आज भी उनकी बातेँ मुझे याद है जब उन्होँने मेरे द्वारा भेजी गई रचना
अंतहीन सड़क की समीक्षा मेँ लिखी - " आपके अनुसार इसे लम्बी कहानी कहूँ या
उपन्यास , कोई फर्क नहीँ पड़ता बल्कि आपने एक ज्वलंत मुद्दे पर अपने
विचारोँ को ताने-बाने मेँ पिरोकर 'अंतहीन सड़क' के माध्यम से प्रस्तुत
किया , जो एक समालोचक की दृष्टि से समान भावना की जाँच पड़ताल करते हुए
खड़ा उतरता है ।"
सबसे पहले उनका नाम का चर्चा कर लूँ । जब मेरी पहली रचना अंतहीन सड़क छप
कर आई थी तो साहित्य के पुरोधा डॉ. {स्व.} रमेश नीलकमल जी जिनका देहावासन
25मई 2013ई. को हो चुका , उन्हीँ के माध्यम से प्रशंसित स्वर सुनने को
मिला । तब अचानक मुझमेँ आकांक्षा जगी कि अग्रवाल कीर्तिबर्द्धन जी से बात
की जाए । मैँ संपर्क साधने के साथ अपनी रचना भी भारतीय डाक के माध्यम से
प्रेषित किया । उनके उदारमन का परिचय मात्र इतना कह कर दे सकता हूँ कि
मुझे साहित्य की ओर प्रेरित करने वाले व्यक्ति बने जिन्होँने फोन व पत्र
के माध्यम से अविभूत किया । उनका आशीर्वाद मेरे माथे पर माँ सरस्वती की
भांति हर हमेशा पड़ता आ रहा है ।
पुनः 27अक्टूबर 2012ई. को 20वां अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन {गाजियाबाद}
मेँ उनसे मुलाकात हुई । मुलाकात एक जाने माने साहित्यकार के आडंबर लिए
नहीँ बल्कि छोटा भाई कह अपार स्नेह से अपना छाप छोड़ गये ।
तब से लेकर आज तक उनके प्रति कुछ भी लिखूं कम , कहूं कम है -अर्थात मेरे
लिए प्रथम व्यक्ति जिनसे दूरभाष पर बातेँ हुई , कोई साहित्यकार की चिट्ठी
मिली तथा प्रथम वे ही हैँ जिनसे मेरी एक पुस्तक के माध्यम से मुलाकात हो
पाई ।
मिलने के उपरान्त मैँ आत्मविभोर हो गया और मेरे मन-मस्तिष्क को एक सोच
उत्पन्न हुई कि औरोँ के अपेक्षा साहित्यकार इमानदार होते हैँ जिसका सरल
उदाहरण "शील और शांति की अजायब पहचान डॉ अ. कीर्तिबर्द्धन जी हैँ ।"
आपका जन्म 9अगस्त 1956ई. को उत्तर प्रदेश प्रांत अंतर्गत मुजफ्फरनगर जनपद
स्थित शामली गाँव मेँ हुआ । साहित्यक रुझान ने उच्चकोटि का इंसान का
परिचय दिया । आपने जितना भी अपने गुरुवर {स्व} डॉ. रमेश नीलकमल जी के
प्रति स्नेह रखा , हमारी भी आपके प्रति अधिक नहीँ तो कम भी नहीँ है ।
साहित्य के माध्यम से आपने हर विधा मेँ अपनी रचनाएँ आम जनोँ तक पहूँचाने
का सराहनी प्रयास किया । आपकी अब तक सात पुस्तकेँ प्रकाशित हो चुकी है ,
जिनमेँ बाल साहित्य 'सुबह-सबेरे' बुजुर्गोँ की दशा-दिशा पर प्रथम ग्रंथ
के रुप मेँ मान्य 'जतन से ओढ़ी चदरिया' , तथा आलेखोँ का संग्रह 'चिँतन
बिंदु' बहुचर्चित रही । आने वाली कृति 'हिन्दु राष्ट्र भारत' एक मिशाल
बनेगी ।
31वाँ महाधिवेशन तरुण सांस्कृतिक चेतना समिति के तत्वाधान मेँ पुस्तक एवं
पत्र पत्रिकाएँ प्रदर्शनीय समारोह मेँ अचानक ध्यान "कल्पनात" पत्रिका पर
जा टिकी । स्पर्श मात्र से रोम रोम प्रफुल्लित हो चला । साहित्य के
साथ-साथ मानव सेवा के प्रति भी अप्रीतम लगाव उसी पत्रिका मेँ चित्र के
साथ मिला जहाँ आप एक जरुरतमंद लोगोँ के लिए रक्तदान करते नजर आए ।
आपकी उपलब्धि और साहित्य सेवा इसी से आंकि जा सकती है कि बैँकिँग क्षेत्र
मेँ कार्यरत होते हुए भी किसी न किसी रुप मेँ समय को चुरा-चुरा कर एक
ग्रंथ रुप दे जाते हैँ । देश-विदेश के सैकड़ोँ पत्र-पत्रिकाओँ मेँ निरंतर
रचनाओँ का प्रकाशन , 60 से अधिक सम्मान , अनेकोँ रचनाओँ का कन्नड़ , तमिल
, नेपाली , ऊर्दू , अंगिका , मैथिली व अंग्रेजी भाषाओँ मेँ अनुवाद व
प्रकाशन के साथ अनेकोँ साहित्यक संस्थाओँ मेँ सम्मान के साथ नाम लिया
जाता आ रहा है ।
आपके सृजन की निरंतरता और नित नवीनता पाठकोँ को विमुग्ध करती है ।
कल्पनशीलता तथा साहित्यिक उर्वरता पर नाम मात्र से रोम-रोम खड़ा हो जाता
है ।
संयोग कहा जाए कि मैँ आपकी रचना को पढ़ नहीँ पाया , कारण साहित्य जैसे
अथाह सागर की ओर कदम मात्र है ।
फिर भी इतने कम दिनोँ मेँ आपका स्नेह व आशीर्वाद का चर्चा साझा करना
चाहूँ तो एक लम्बी कहानी जरुर तैयार हो जायेगी ।
ईश्वर से प्रार्थना है कि सदैव स्वस्थ्य एवं प्रसन्न रहते हुए मेरे तरह
अनेकोँ युवाओँ को प्रेरित व मार्गदर्शन करते रहेँ ।
संजय कुमार "अविनाश"
वंशीपुर मेदनी चौकी
लखीसराय बिहार
811106
मोबाईल 9570544102
उनका हम आलिँगन कर लेँ
संवादोँ को आधार बनाकर
मानवता जीवन मेँ भर लेँ ।
यह उक्ति आदरणीय युवाओँ का मार्गदर्शक डॉ अ. कीर्तिबर्द्धन जी की लेखनी
से उद्धृत है और अपने लिखे अनुसार आत्मसात पर उतारु भी ।
आज भी उनकी बातेँ मुझे याद है जब उन्होँने मेरे द्वारा भेजी गई रचना
अंतहीन सड़क की समीक्षा मेँ लिखी - " आपके अनुसार इसे लम्बी कहानी कहूँ या
उपन्यास , कोई फर्क नहीँ पड़ता बल्कि आपने एक ज्वलंत मुद्दे पर अपने
विचारोँ को ताने-बाने मेँ पिरोकर 'अंतहीन सड़क' के माध्यम से प्रस्तुत
किया , जो एक समालोचक की दृष्टि से समान भावना की जाँच पड़ताल करते हुए
खड़ा उतरता है ।"
सबसे पहले उनका नाम का चर्चा कर लूँ । जब मेरी पहली रचना अंतहीन सड़क छप
कर आई थी तो साहित्य के पुरोधा डॉ. {स्व.} रमेश नीलकमल जी जिनका देहावासन
25मई 2013ई. को हो चुका , उन्हीँ के माध्यम से प्रशंसित स्वर सुनने को
मिला । तब अचानक मुझमेँ आकांक्षा जगी कि अग्रवाल कीर्तिबर्द्धन जी से बात
की जाए । मैँ संपर्क साधने के साथ अपनी रचना भी भारतीय डाक के माध्यम से
प्रेषित किया । उनके उदारमन का परिचय मात्र इतना कह कर दे सकता हूँ कि
मुझे साहित्य की ओर प्रेरित करने वाले व्यक्ति बने जिन्होँने फोन व पत्र
के माध्यम से अविभूत किया । उनका आशीर्वाद मेरे माथे पर माँ सरस्वती की
भांति हर हमेशा पड़ता आ रहा है ।
पुनः 27अक्टूबर 2012ई. को 20वां अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन {गाजियाबाद}
मेँ उनसे मुलाकात हुई । मुलाकात एक जाने माने साहित्यकार के आडंबर लिए
नहीँ बल्कि छोटा भाई कह अपार स्नेह से अपना छाप छोड़ गये ।
तब से लेकर आज तक उनके प्रति कुछ भी लिखूं कम , कहूं कम है -अर्थात मेरे
लिए प्रथम व्यक्ति जिनसे दूरभाष पर बातेँ हुई , कोई साहित्यकार की चिट्ठी
मिली तथा प्रथम वे ही हैँ जिनसे मेरी एक पुस्तक के माध्यम से मुलाकात हो
पाई ।
मिलने के उपरान्त मैँ आत्मविभोर हो गया और मेरे मन-मस्तिष्क को एक सोच
उत्पन्न हुई कि औरोँ के अपेक्षा साहित्यकार इमानदार होते हैँ जिसका सरल
उदाहरण "शील और शांति की अजायब पहचान डॉ अ. कीर्तिबर्द्धन जी हैँ ।"
आपका जन्म 9अगस्त 1956ई. को उत्तर प्रदेश प्रांत अंतर्गत मुजफ्फरनगर जनपद
स्थित शामली गाँव मेँ हुआ । साहित्यक रुझान ने उच्चकोटि का इंसान का
परिचय दिया । आपने जितना भी अपने गुरुवर {स्व} डॉ. रमेश नीलकमल जी के
प्रति स्नेह रखा , हमारी भी आपके प्रति अधिक नहीँ तो कम भी नहीँ है ।
साहित्य के माध्यम से आपने हर विधा मेँ अपनी रचनाएँ आम जनोँ तक पहूँचाने
का सराहनी प्रयास किया । आपकी अब तक सात पुस्तकेँ प्रकाशित हो चुकी है ,
जिनमेँ बाल साहित्य 'सुबह-सबेरे' बुजुर्गोँ की दशा-दिशा पर प्रथम ग्रंथ
के रुप मेँ मान्य 'जतन से ओढ़ी चदरिया' , तथा आलेखोँ का संग्रह 'चिँतन
बिंदु' बहुचर्चित रही । आने वाली कृति 'हिन्दु राष्ट्र भारत' एक मिशाल
बनेगी ।
31वाँ महाधिवेशन तरुण सांस्कृतिक चेतना समिति के तत्वाधान मेँ पुस्तक एवं
पत्र पत्रिकाएँ प्रदर्शनीय समारोह मेँ अचानक ध्यान "कल्पनात" पत्रिका पर
जा टिकी । स्पर्श मात्र से रोम रोम प्रफुल्लित हो चला । साहित्य के
साथ-साथ मानव सेवा के प्रति भी अप्रीतम लगाव उसी पत्रिका मेँ चित्र के
साथ मिला जहाँ आप एक जरुरतमंद लोगोँ के लिए रक्तदान करते नजर आए ।
आपकी उपलब्धि और साहित्य सेवा इसी से आंकि जा सकती है कि बैँकिँग क्षेत्र
मेँ कार्यरत होते हुए भी किसी न किसी रुप मेँ समय को चुरा-चुरा कर एक
ग्रंथ रुप दे जाते हैँ । देश-विदेश के सैकड़ोँ पत्र-पत्रिकाओँ मेँ निरंतर
रचनाओँ का प्रकाशन , 60 से अधिक सम्मान , अनेकोँ रचनाओँ का कन्नड़ , तमिल
, नेपाली , ऊर्दू , अंगिका , मैथिली व अंग्रेजी भाषाओँ मेँ अनुवाद व
प्रकाशन के साथ अनेकोँ साहित्यक संस्थाओँ मेँ सम्मान के साथ नाम लिया
जाता आ रहा है ।
आपके सृजन की निरंतरता और नित नवीनता पाठकोँ को विमुग्ध करती है ।
कल्पनशीलता तथा साहित्यिक उर्वरता पर नाम मात्र से रोम-रोम खड़ा हो जाता
है ।
संयोग कहा जाए कि मैँ आपकी रचना को पढ़ नहीँ पाया , कारण साहित्य जैसे
अथाह सागर की ओर कदम मात्र है ।
फिर भी इतने कम दिनोँ मेँ आपका स्नेह व आशीर्वाद का चर्चा साझा करना
चाहूँ तो एक लम्बी कहानी जरुर तैयार हो जायेगी ।
ईश्वर से प्रार्थना है कि सदैव स्वस्थ्य एवं प्रसन्न रहते हुए मेरे तरह
अनेकोँ युवाओँ को प्रेरित व मार्गदर्शन करते रहेँ ।
संजय कुमार "अविनाश"
वंशीपुर मेदनी चौकी
लखीसराय बिहार
811106
मोबाईल 9570544102
पाव पाव दीपावली, शुभकामना अनेक |
ReplyDeleteवली-वलीमुख अवध में, सबके प्रभु तो एक |
सब के प्रभु तो एक, उन्हीं का चलता सिक्का |
कई पावली किन्तु, स्वयं को कहते इक्का |
जाओ उनसे चेत, बनो मत मूर्ख गावदी |
रविकर दिया सँदेश, मिठाई पाव पाव दी ||
वली-वलीमुख = राम जी / हनुमान जी
पावली=चवन्नी
गावदी = मूर्ख / अबोध