मैं कवि हूँ, कोई भाँड नहीं हूँ,
स्वाभिमानी हूँ, चाटुकार नहीं हूँ।
बेचते कलम चंद रूपैयों की खातिर,
मैं वो सत्ता का दलाल नहीं हूँ।
लड़ाते भाई-भाई को,सत्ता के लोभ में,
मैं किसी दल का ठेकेदार नहीं हूँ।
लिखता हूँ वही जो जन-जन के हित में,
तुष्टिकरण का मैं, पैरोकार नहीं हूँ।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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