औरतें कभी चुप नहीं होती,
औरतें कभी खुश नहीं होती।
उसका पति मेरे पति से अच्छा,
औरतें कभी संतुष्ट नहीं होती।
देखती है सलीका दूसरों के घरों में,
अपने घरों की कमियां नहीं देखती।
देखती हैं फटी एड़ियाँ, दूसरों की सदा,
औरतें अपने चेहरे के दाग नहीं देखती।
समझती हैं खूबसूरत खुद को सारे जहां से,
दूसरों की खूबसूरती बर्दास्त नहीं होती।
बताती हैं खुद को तीस की, पचास की उम्र में,
उम्र के मायने में, उम्र की मोहताज नहीं होती।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
औरतें कभी खुश नहीं होती।
उसका पति मेरे पति से अच्छा,
औरतें कभी संतुष्ट नहीं होती।
देखती है सलीका दूसरों के घरों में,
अपने घरों की कमियां नहीं देखती।
देखती हैं फटी एड़ियाँ, दूसरों की सदा,
औरतें अपने चेहरे के दाग नहीं देखती।
समझती हैं खूबसूरत खुद को सारे जहां से,
दूसरों की खूबसूरती बर्दास्त नहीं होती।
बताती हैं खुद को तीस की, पचास की उम्र में,
उम्र के मायने में, उम्र की मोहताज नहीं होती।
डॉ अ कीर्तिवर्धन
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