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Sunday, February 23, 2014

dost

जब भी होता है मन व्यथित
दोस्त को पता चल जाता है।
रिश्तो नातों की भीड़ से अलग,
दोस्त हर जगह नजर आता है।
मचलते जज्बात अपनो की बेरुखी से
दोस्त का ही कन्धा समझ आता है।
दर्द बयाँ कर ना सका अपनों के सामने,
दोस्त को कह मन हल्का हो जाता है।


डॉ अ कीर्तिवर्धन

जब भी होता है मन व्यथित, दोस्त को पता चल जाता है।
रिश्तो नातों की भीड़ से अलग, दोस्त हर जगह नजर आता है।
मचलते जज्बात अपनो की बेरुखी से, दोस्त का ही कन्धा समझ आता है।
दर्द बयाँ कर ना सका अपनों के सामने दोस्त को कह मन हल्का हो जाता है।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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