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Thursday, February 6, 2014

muktak-jindagi chalati rahi saath mere

जिंदगी चलती रही साथ मेरे, धुप-छाँव बनकर,
ख्यालों में अपने जिंदगीभर, खोया रहा मैं।
चाहा नहीं जिंदगी ने मुझसे कभी कुछ,
क्यों जिंदगी भर धोखा उसे देता रहा मैं।

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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