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Thursday, February 6, 2014

muktak-shabd

शब्द ही हैं साथ मेरे, शब्दों के मैं साथ हूँ,
शब्द ही खामोशी का गुंजन, शब्दों में संगीत हूँ।
जब भी चाहा छोड़कर शब्दों को, तन्हां मैं रहूँ,
शब्द यूँ गुनगुनाने लगे, तन्हाइयों में ख्वाब हूँ।

डॉ अ  कीर्तिवर्धन

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